नोट ; यह लेख प्रतियोगिता दर्पण हिन्दी मासिक पत्रिका के अक्टूबर 2015 में भी प्रकाशित हो चुका है
-मनोज कुमार गुप्ता
पर्यटन किसी भी राष्ट्र और राष्ट्रीयता के लिए सामाजिक
आयोजन रहा है। अतीत से ही इसे एक दूसरे के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भौगोलिक मूल्यों को समझने का एक बेहतर
माध्यम माना जाता रहा है। आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से देखा जाय तो किसी भी
राष्ट्र अथवा राज्य के लिए पर्यटन और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है। शिक्षा, मनोरंजन, ज्ञान एवं व्यापारिक हितों की पूर्ति के लिए लोग सदियों से
देशाटन,
यात्राएं आदि करते आए हैं, और जो निरंतर जारी है । यह जरूर है कि, क्रमिक विकास के साथ पर्यटन का अर्थ, स्वरूप तथा उद्देश्य बदलता रहा है। वर्तमान परिदृश्य में
देखें तो पर्यटन न सिर्फ विकसित एवं विकासशील देशों में सबसे बड़े उद्योग क्षेत्र
के रूप में परिलक्षित हुआ है बल्कि, राष्ट्र की विकास योजना के सामाजिक आर्थिक लक्ष्यों को
हासिल करने में भी इसकी अहम भूमिका रहती है।
बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में वैश्विक स्तर पर पर्यटन
क्षेत्र की व्यापकता और इसमें निहित उद्योग की अपार संभावनाओं पर गंभीरता से विचार किया जाने लगा। इसे ऐसे
उद्योग के रूप में देखा जाने लगा जो आय के साथ-साथ जीवन स्तर में तीव्र वृद्धि
करने में भी सक्षम है। “वर्ष 1980
में फिलीपींस की राजधानी मनीला में विश्व पर्यटन संगठन
द्वारा आयोजित सम्मेलन की उद्घोषणा में कहा गया कि पर्यटन का उद्देश्य व्यक्ति के
जीवन स्तर को बढ़ाना है। यह व्यक्ति को बेहतर जीवन शैली प्रदान करता है।”1 सम्मेलन में पर्यटन को व्यक्ति का अधिकार बताते हुए
प्रत्येक राष्ट्र के लिए पर्यटन क्षेत्र के विकास को आवश्यक गतिविधि तक बताया गया।
एक रूप में देखा जाय तो पर्यटन का विकास सीधे तौर पर किसी राष्ट्र के आर्थिक एवं
सामाजिक विकास से जुड़ा है।
भारत में पर्यटन का
क्रमिक विकास
भारत एक अतुलनीय सांस्कृतिक एवं पारिस्थितिकीय विरासत है। भारत में अतीत से
भ्रमण और देशाटन की स्वस्थ्य परंपरा रही है । मैक्स मूलर ने भारत की महत्ता को
वर्णित करते हुए कहा है कि “यदि हमें संपूर्ण विश्व में किसी ऐसे देश की खोज करनी हो जिसमें प्रकृति की
सर्वाधिक सम्पदा, शक्ति और सौंदर्य निहित हो और जिसके कुछ भाग तो वस्तुतः धरती पर स्वर्ग हों तो
मैं भारत का नाम लूँगा।”2 यहां अप्रतिम जैव-विविधता से पूर्ण वनों, नदियों, पहाड़ों के साथ ही ऐतिहासिक स्थानों, मंदिरों और तीर्थ स्थलों, गुफा, संग्रहालय एवं सांस्कृतिक धरोहरों की वैविध्यपूर्ण उपस्थिति
की वजह से उद्योग में उच्चर वृद्धि हासिल करने की अपार संभावनाएं हैं।
यदि हम आधुनिक पर्यटन की बात करें तो भारत में भी इसकी औपचारिक शुरुआत बीसवीं
सदी के मध्य काल के बाद ही होती है । “वर्ष 1946 में पर्यटन के महत्व को दृष्टिगत रखते हुए पर्यटन विकास के
लिए परामर्श हेतु सारजेंट समिति की स्थापना की गयी जिसने अपनी रिपोर्ट 1947 में प्रस्तुत की तथा पर्यटन विकास से सम्बद्ध विभिन्न
अभिकरणों में समन्वय की कार्य योजना शुरू की गयी ।”3 जल एवं परिवहन मंत्रालय के अधीन वर्ष 1949 में एक लघु पर्यटक यातायात शाखा प्रारंभ की गयी । वर्ष 1958 में प्राक्कलन समिति की स्थापना भी भारत में पर्यटन विकास
की दृष्टि से ही की गयी । तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए पर्यटन की बुनियादी
सुविधाओं को जुटाने एवं पर्यटन क्षेत्र के विकास की दृष्टि से वर्ष 1966 में भारत होटल निगम लि., भारत पर्यटन परिवहन उपक्रम लि. तथा भारत पर्यटन निगम लि. का
विलय करके भारत पर्यटन विकास निगम लि. (आईटीडीसी) की स्थापना की गयी। तभी से
आईटीडीसी देश में पर्यटन के क्रमिक विकास, संवर्धन और विस्तार में निरंतर प्रमुख संचालक की भूमिका में
बना है। यह निगम परिवहन सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ-साथ पर्यटकों के लिए विभिन्न
स्थानों पर होटलों, रेस्टोरेंटों आदि का संचालन भी कर रहा है।
पंचवर्षीय योजनाएं और पर्यटन
पर्यटन को मानव संसाधन विकास एवं राष्ट्रीय आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण पहलू
मानते हुए पहली पंचवर्षीय योजना से ही इस क्षेत्र के विकास और बेहतरी पर जोर दिया
जा रहा है। पहली पंचवर्षीय योजना ( 1951-1956) के तहत क्रमशः न्यूयार्क एवं लंदन में वहां के पर्यटकों को
आकर्षित करने के लिए भारत पर्यटन कार्यालय खोला गया तथा मुंबई में पर्यटकों को
ठहरने के लिए होटल संस्था खोला गया। दूसरी, तीसरी, चैथी एवं पाँचवीं पंचवर्षीय योजनाएं पर्यटकों तथा पर्यटन
स्थलों पर सुविधाओं को बढ़ाने के साथ ही विदेशी मुद्रा प्राप्ति, नौकरियों के अवसर बढ़ाने आदि कार्यों पर केंद्रित रहीं । छठी
पंचवर्षीय योजना में पर्यटन को आर्थिक विकास का एक नया आयाम स्वीकारते हुए पहली
बार वर्ष 1982 में
पर्यटन प्रोत्साहन नीति की घोषणा की गयी। जिसमें पर्यटन को बढ़ावा देने संबंधी कई
मुद्दे शामिल किए गए। सातवीं पंचवर्षीय योजना में राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा
पर्यटन को उद्योग क्षेत्र के रूप में स्वीकृति प्रदान करना एक सकारात्मक पहल का
परिचायक था। अब पर्यटन के व्यापारीकरण के साथ ही स्थानीय स्तर पर हस्त एवं शिल्प
कलाओं जैसी अन्य चीजों को भी प्रोत्साहित किया जाने लगा। आठवीं, नवीं आदि योजनाओं में मुख्य परिपथों का निर्माण उन पर
पर्यटकों की सुविधाओं का प्रसार, सरकारी नियंत्रण के तहत निजी संस्थाओं को अधिक से अधिक
प्रोत्साहन, और
घरेलू पर्यटकों के साथ ही विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने हेतु अनेक योजनाएं एवं
सुविधाएं सुनिश्चित किए जाने के साथ ही रोजगार के अवसरों की उपलब्धता पर भी खासा
ध्यान दिया गया।
राष्ट्रीय पर्यटन नीति 2002
पर्यटन मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय पर्यटन नीति का प्रारूप तैयार किया गया था
जिसका उद्देश्य पर्यटन को आर्थिक विकास के बहुआयामी तंत्र के रूप में प्रतिष्ठित
करने तथा रोजगार सृजन एवं निर्धनता उन्मूलन आदि के लिए एक दूरगामी रणनीति तय करना
था। इसी आशय से अक्तूबर 2001 में मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी
वाजपेई ने कहा था कि “ विश्व के अधिकांश भाग में पर्यटन आर्थिक विकास का प्रमुख साधन है। कुछ देशों
ने पर्यटन संभावनाओं का पूर्ण दोहन कर अपनी अर्थव्यवस्थाओं को ही बदल डाला है ।
पर्यटन में विभिन्न तरह के व्यापक रोजगार सृजित करने की अपार क्षमता है- और हम सब
यह जानते हैं कि भारत की इस समय की जरूरत रोजगार के अधिक अवसर पैदा करने की है ।”4 इस सम्मेलन में यह स्वीकारा गया कि यदि यदि भारत को पर्यटन
उद्योग की इस क्रांति में अर्थपूर्ण ढंग से शामिल होना है तो इसे अपनी रणनीति और
कार्यान्वयन के अपने तंत्र तथा तकनीकि को बदलना होगा ।
इस नीति प्रपत्र में पर्यटन क्षेत्र में अधिक से अधिक
रोजगार की संभावनाओं में बढ़ोत्तरी तथा अन्य क्षेत्रों के साथ विकासोन्मुख संपर्क
स्थापित कर आर्थिक एकीकरण में तेजी लाने जैसे मुद्दों को शामिल किया गया है।
जिनमें से कुछ प्रमुख मुद्दे जैसे पर्यटन को आर्थिक विकास के एक तंत्र के रूप में
प्रतिष्ठित करना, विश्व की फलती फूलती व्यवसाय तथा भारत की अपार संभावना का लाभ उठाने के लिए
भारत को विश्व मार्का के रूप में प्रतिष्ठित करना, निजी क्षेत्र को सरकार के साथ मिलकर कार्य करने के लिए
उत्प्रेरित करना, यह सुनिश्चित करना कि भारत आने वाले पर्यटक भौतिक, सांस्कृतिक आदि रूप से संतुष्ट होने के साथ ही देश को
भली-भांति समझ- परख सकें। इस प्रपत्र में पर्यटन विकास पर बल दिये जाने संबंधी सात
प्रमुख क्षेत्रों का उल्लेख किया गया है, जिनमें स्वागत, सूचना, सुविधा, सुरक्षा, सहयोग, संरचना, एवं सफाई है। इस प्रकार राष्ट्रीय पर्यटन नीति- 2002
को आधुनिक भारतीय पर्यटन के विकास में प्रमुख नीतिगत पड़ाव
के रूप में देखा जा सकता है।
प्रमुख संगठन तथा संस्थान
वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर पर पर्यटन
क्षेत्र के विकास और संवर्धन हेतु विभिन्न संस्थाएं एवं संगठन कार्यरत हैं। जिनमें
पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार, भारतीय पर्यटन और यात्रा प्रबंध संस्थान, राष्ट्रीय होटल प्रबंध और खान-पान टेक्नोलॉजी परिषद्, भारतीय पर्यटन विकास निगम लि., भारतीय स्कीइंग तथा पर्वतारोहण संस्थान और राष्ट्रीय
जल-क्रीड़ा संस्थान प्रमुख हैं। पर्यटन मंत्रालय पर्यटन के बुनियादी ढांचे के
बहुआयामी विकास के साथ ही विदेशी एवं देशज पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ट करने के
कार्यक्रमों और नीतियों का निर्माण करने व उन्हें सुचारु रूप से लागू करने के लिए
उत्तरदाई है। मंत्रालय अपने क्षेत्रीय तथा
विदेशी कार्यालयों के माध्यम से लगातार इस काम में सक्रिय है। अतुल्य भारत एवं
इंक्रेडिबल इंडिया जैसे अभियान बहुआयामी संवर्धनात्मक पहल रहे हैं। पर्यटन के
क्षेत्र में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारतीय पर्यटन और यात्रा
प्रबंध संस्थांन (ग्वालियर) कार्यरत है। वर्ष 1966 में गठित भारतीय पर्यटन विकास निगम लि. का प्रमुख उद्देश्य
पर्यटन ढांचे के विस्तृत विकास सहित देश को विश्व में पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र
बनाना है। निगम ने राष्ट्रीय स्तर पर एक वृहद होटल श्रेणी बनाने में सफलता प्राप्त
की है। साथ ही निगम निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों को पर्यटन विकास संबंधी
परामर्श सेवाएं भी उपलब्ध कराता है।
प्रमुख पर्यटन क्षेत्र एवं स्थल
भारत एक धर्म निरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र होने के नाते
विभिन्न सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक एवं पारंपरिक विविधताओं की झलक प्रस्तुत करता है। यहां
प्रत्येक दिन पर्व एवं उत्सव के रूप में मनाया जाता है। भारत की अप्रतिम प्राकृतिक
सुंदरता तथा ऐतिहासिक स्थल पर्यटकों को सहसा अपनी ओर आकृष्ट करते हैं। भारत में
विभिन्न पर्यटन क्षेत्रों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। भारतीय संस्कृति के
नृत्य-गायन, पेंटिंग, मूर्तिकला, वास्तुकला आदि को दुनिया भर में ख्याति प्राप्त है। अजंता
एवं एलोरा की गुफाएं, खजुराहो के मंदिरों की वातुशास्त्र कला, मुगल वास्तुशास्त्र का परिचायक फतेहपुर सीकरी आदि भारतीय
संस्कृति सभ्यता एवं कला का परिचायक है। साहसिक पर्यटन भारत में एक नवाचार के रूप
में शामिल हुआ है जो वर्तमान में पर्यटकों के बीच बहुत ही लोकप्रिय है। पर्यटक
लद्दाख,
सिक्किम एवं हिमालय आदि पर ट्रेकिंग करना पसंद करते हैं।
यहां वन्य जीवन भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। सरिस्का वन्यजीव
अभ्यारण्य, केवला
देव घाना राष्ट्रीय पार्क एवं कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान इनके उदाहरण हैं।
परिस्थिकीय पर्यटन का आकर्षण भी भारतीय पर्यटन की उपलब्धियों में शामिल है। उड़ीसा, गोवा, मुंबई तथा केरल के समुद्र तटीय बीच कश्मीर के गलीचे, बनारस की साड़ियाँ, आगरा और कानपुर के चमड़े के उत्पाद एवं देश भर में अपनी
खूबियों के लिए प्रसिद्ध ऐसे बहुत सारे क्षेत्रीय बाजार पर्यटकों को आकर्षित करते
हैं। पिछले कुछ वर्षों में मेडिकल टूरिज्म भी बढ़ा है जो आर्थिक दृष्टि से
महत्वपूर्ण रहा है।
मानव संसाधन विकास और पर्यटन उद्योग के बीच अंतरसंबंध
पर्यटन क्षेत्र की व्यापकता बढ़ाने के साथ-साथ मानव संसाधन सेवा की आवश्यकता
परिलक्षित हुई है। वर्तमान में पर्यटन बहुत बड़े राष्ट्रीय उद्योग के रूप में उभर
रहा है। सकल घरेलू उत्पाद में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी क्रमशः बढ़ रही है। यह ऐसा
क्षेत्र है जहां कुशल मानवीय श्रम शक्ति की मांग दिनों दिन बढ़ रही है। ध्यान रखने
वाली बात यह है कि छोटे अथवा बड़े किसी भी उद्योग की क्रमिक सफलता के लिए मानव की
योग्यता एवं गुणवत्ता का निर्धारण करना बेहद जरूरी होता है। अर्थात मानव संसाधन के
नियोजन से पर्यटन विकास लक्ष्यों को पूरा करना और भी आसान हो सकता है। मानव संसाधन
नियोजन एक व्यापक शब्द है, “यह संगठन के वर्तमान एवं भावी उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए मानव शक्ति के
पूर्वानुमान एवं उसकी आवश्यकतानुसार उपलब्धि की तकनीकि है।”5 इक्कीसवीं सदी के इस दौर में पर्यटन उद्योग को राष्ट्रीय
विकास के आवश्यक उपक्रम के रूप में देखा जा रहा है और इस विकासशील उपक्रम में
निरंतर बढ़ती हुई आवश्यकताओं में से मानव संसाधन विकास भी एक प्रमुख हिस्सा है।
पर्यटन का आर्थिक विकास और रोजगार सृजन में योगदान
आज पर्यटन उद्योग देश के आर्थिक विकास एवं रोजगार सृजन का महत्त्वपूर्ण कारक
है। वैश्वीकरण का भी व्यापक प्रभाव पर्यटन क्षेत्र पर पड़ा है। वर्तमान में देखा
जाय तो विदेशी मुद्रा अर्जन करने वाले पांच प्रमुख क्षेत्रों में से पर्यटन एक है।
पिछले कुछ वर्षों से भारत में उत्तरोत्तर विदेशी मुद्रा आय में वृद्धि दर्ज हो रही
है। पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार की वार्षिक रिपोर्ट वर्ष 2014-15 के आंकड़ों के अनुसार, 2010 में भारत में पर्यटन से विदेशी मुद्रा आय 64889 करोड़, 2011 में 77591करोड़ , 2012 में 94487 करोड़, 2013 में 107671 करोड़ एवं 2014 में 120083 करोड़ रही है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 में विदेशी पर्यटकों की संख्या में 10.6 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। पर्यटन से जुड़े और भी कई अन्य
स्रोत हैं जो आर्थिक विकास में अपना योगदान देते हैं। सकल घरेलू उत्पाद में इस
क्षेत्र की 6
प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी पर्यटन के आर्थिक महत्त्व को दर्शाता है।
आर्थिक योगदान के साथ-साथ रोजगार सृजन में इसका बहुत बड़ा
योगदान है। योजना आयोग के एक सर्वे के अनुसार “प्रत्येक 10 लाख रूपये के निवेश पर पर्यटन क्षेत्र में 78 लोगों को रोजगार मिल सकता है।”6 आयोग का मानना है कि कम दक्षता एवं अर्धदक्षता वाले
श्रमिकों को रोजगार प्रदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र पर्यटन उद्योग है।
लगभग पांच करोड़ से अधिक लोग किसी न किसी रूप में पर्यटन उद्योग से जुड़े हैं।
पर्यटन क्षेत्र में संभावनाएं
पर्यटन, सेवा
क्षेत्र का एक ऐसा उभरता हुआ उद्योग है जिसमें अपार संभावनाएं निहित हैं। भारत
अतुलनीय प्राकृतिक स्थलों के साथ ही वैश्विक स्तर पर एक बड़े जैविक आयामों के
क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, जो पारिस्थिकीय पर्यटन की दृष्टि से सकारात्मक पक्ष है।
पर्यटकों के लिए भारतीय बाजार विविधताओं भरा स्थान है। इन विविधताओं के आर्थिक
पहलुओं को देखते हुए शिल्प आदि क्षेत्रों के संवर्धन हेतु ठोस सरकारी प्रयासों का
परिणाम एक नई आर्थिक संभावना के रूप में देखा जा सकता है तथा नए चिन्हित पर्यटन
स्थलों पर ढांचागत सुविधाओं का विकास कर न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में
भी रोजगार के अवसरों की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है। पर्यटन संसाधनों, सुविधाओं, और सेवाओं आदि प्राथमिकताओं को बढ़ाकर पर्यटन क्षेत्र के
सामने आ रही प्रतिस्पर्धात्मक बाधाओं को दूर कर इस उद्योग में विकास की और अधिक
संभावनाओं की तलाश की जा सकती है।
निष्कर्ष
निःसंदेह पर्यटन तेजी से उभरते हुए सेवा क्षेत्र का उद्योग है जिसका देश की
अर्थव्यवस्था और मानव संसाधन विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। पिछले कुछ दशकों में
राष्ट्रीय आय और रोजगार उपलब्धता में पर्यटन क्षेत्र की भूमिका बढ़ी है। आज हम
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय पर्यटन ब्रांड के सृजन की ओर अग्रसर हैं। ऐसे में
पर्यटन क्षेत्र के विकास की निरंतरता बनाए रखने के लिए कुछ सकारात्मक रणनीति बनाना
आवश्यक हो जाता है, ताकि आने वाले समय में भारतीय पर्यटन उद्योग देश के समग्र विकास में अधिक से
अधिक योगदान दे सके। स्वछता, सुरक्षा एवं पारिस्थितिकीय संतुलन जैसे कुछ ऐसे कारक हैं जो
पर्यटन क्षेत्र के मूल कहे जा सकते हैं जिन्हें अनुकूल बनाए रखना जरूरी है। पर्यटन
क्षेत्र को और भी व्यापक एवं विस्तृत बनाने हेतु नवाचार तकनीकों का बेहतर प्रयोग
सकारात्मक कदम हो सकता है।
संदर्भ सूची
1 व्यास, राजेश कुमार.(2011). भारत में पर्यटन. प्रभात प्रकाशन, दिल्ली पृ. 14
2 राष्ट्रीय पर्यटन नीति 2002 पर्यटन विभाग, पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार पृ.28
3 डॉ.छिल्लर, सुशील कुमार.(2013). भारत में पर्यटन विकास एवं संभावनाएं. राहुल पब्लिशिंग हाउस, मेरठ पृ.-4
4 राष्ट्रीय पर्यटन नीति 2002, पर्यटन विभाग, पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार पृ. 3
5 अग्रवाल, विनोद.( 2012). पर्यटन एवं मानव संसाधन विकास. अर्जुन पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली पृ. 197
6 http://www.pib.nic.in/newsite/hindifeature.aspx?relid=18007 (4:53pm,
21/4/2015)
· शर्मा, अतुल.(2012). आर्थिक विकास में पर्यटन का योगदान. ईशिका पब्लिशिंग हाउस, जयपुर
· वार्षिक रिपोर्ट (2014-2015), पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार
·
Report of the working
group on tourism] 12th year plan ¼2012&2017½- Ministry of tourism
Government Of India
·
http://tourism-gov-in/