Tuesday, 23 June 2015
Friday, 5 June 2015
निःशब्द

अधर
तुम्हें देखकर
तुम्हारी अनंत जिज्ञासा
प्रश्नांकित मुद्रा
को देखकर'
शायद
यही पूंछना चाहती हैं, न
ये अनंत संभावनाओं
को तलाशती निगाहें.....
क्या यही सच है ?
जो दिख रहा है,
आभाष हो रहा है
हमारे इर्द-गिर्द
क्या दुनिया इतनी बदसूरत
है ?
या हमारी ही बदसूरती का
प्रतिबिंब
#मनोज कुमार गुप्ता 'पथिक'
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