Friday, 5 June 2015

निःशब्द



निःशब्द हो जाते हैं
अधर
तुम्हें देखकर
तुम्हारी अनंत जिज्ञासा
प्रश्नांकित मुद्रा
को देखकर' 
शायद 
यही पूंछना चाहती हैं,
ये अनंत संभावनाओं 
को तलाशती निगाहें.....
क्या यही सच है ?
जो दिख रहा है,
आभाष हो रहा है
हमारे इर्द-गिर्द
क्या दुनिया इतनी बदसूरत
है ?
या हमारी ही बदसूरती का 
प्रतिबिंब     
                        #मनोज कुमार गुप्ता 'पथिक' 

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