भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में महिलाएं हिंसा का शिकार हो रही हैं। महिलाओं पर हिंसा सभी वर्गों एवं समाजों में व्याप्त है। पितृसत्ता के अंतर्गत औरतों पर नियंत्रण रखने और उन्हें दबाने के लिए अनेक प्रकार की हिंसा का इस्तेमाल किया जाता है। अक्सर जीवन में ऐसे अंतर्विरोध सामने आते हैं, कि यह समझ पाना मुश्किल होता है, कि इस दुनिया को किस नजरिये से देखा जाए। ये अंतर्विरोध दो दुनियाओं के फर्क को बड़ी संजीदगी से हमारे सामने ले आते हैं और नये सिरे से सोचने पर मजबूर करते हैं, कि क्या सारी स्त्रियां पुरुष सत्ता या वर्चस्व की शिकार हैं या उनका एक खास हिस्सा ही इससे पीड़ित है? कहीं स्त्रियां पुरुष उत्पीड़न की सीधे शिकार हैं, तो कहीं वह पितृसत्तात्मक मानसिकता के अनुरूप विमर्श तैयार करती हुई पुरुषवादी एजेंडे को ही मजबूत बनाने के कार्य में लगी हैं।
आज सहशिक्षा बढ़ने और जीवन शैली में आधुनिकता का बोलबाला होने के साथ ही हम देख सकते हैं कि, आम लड़कियों में जहां अपने जीवन और उसके निर्णयों के प्रति जागरूकता बढ़ी है, उसके ठीक समानांतर लड़कों में उनके वजूद को लेकर एक नकार की भावना पनप रही है। आज जब लड़कियाँ कैरियर, प्रेम, और शादी जैसे मसले पर स्वयं निर्णय लेने और नापसंदगी को जाहिर करने में अपनी झिझक से बहार आ रहीं हैं, जो लड़कों को नागवार गुजर रहा है और वे तेजाबी हमले जैसे कठोर और सबसे वीभत्स तरीके अपनाने लगे हैं, चाहे वह बांद्रा टर्मिनल पर प्रीती राठी पर तेजाबी हमला हो या गाजियाबाद की निशा, या फिर दिल्ली कि लक्ष्मी जिस पर तेजाब इसलिए फेंक दिया गया, क्योंकि उसने 32 वर्षीय एक पुरुष के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। तेजाब महिलाओं के प्रति हिंसा का सबसे विकृत रूप है।
लॉ कमीशन ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट नं. 226 के अनुसार ज्यादातर तेजाबी हमले में हैड्रोक्लोरिक एसिड और सल्फ्यूरिक एसिड का प्रयोग किया जाता है तथा मुख्यतः युवा महिलाएं ही इसका शिकार होती हैं। ऐसी घटनाएं सार्वजनिक स्थानों या घर में होती हैं, तथा इसका स्वरूप ऐसा होता है, जो कि पीड़ित व्यक्ति के चेहरे और शरीर को क्रूरतापूर्वक नष्ट कर देता है और साथ ही उनके आत्मविश्वास, जीवन शक्ति, सामाजिक सहभागिता आदि को बड़ी गहराई से प्रभावित करता है। महिलाओं पर हिंसा के ऐसे अत्यधिक उग्र प्रकार समाज में सामंती संबंधों के फैलाव और पितृसत्ता को दर्शाते हैं। तेजाबी हमले की ज्यादातर घटनाएं शहरों या उससे सटे हुये इलाकों में ही घटी हैं। भूमंडलीकरण के युग में अचानक उपभोक्तावादी और भौतिकवादी ‘उपयोग करो और फेंक दो’ संस्कृति का अविर्भाव हुआ. भारत के पड़ोसी राष्ट्रों में भी एसिड अटैक की घटनाएँ बढ़ रही हैं लेकिन “बांग्लादेश में वर्ष 2002 में ।बपक ब्वदजतवस ।बज 2002 और ।बपक ब्तपउम च्तमअमदजपवद ।बज 2002“1 के तहत एसिड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के बाद तेजाबी हमलों का प्रतिशत एक चैथाई रह गया है।
“राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2010, 2011 और 2012 में क्रमशः तेजाब पीड़ित महिलाओं की संख्या 65, 98, 101 है।”2 जो यह दर्शाती है कि किस प्रकार यह हिंसा तेजी से बढ़ रही है। बावजूद इसके सरकार और कानून व्यवस्था इसमें ज्यादा ध्यान नहीं दे रही। आये दिन तेजाबी हमले की घटनाएँ प्रकाश में आ रही हैं। इस हिंसा के विरुद्ध नए कानून बनाने और उसे प्रभावी ढंग से लागू करने कि जरूरत है। तेजाबी हमले की अधिकतर घटनाएँ शहरी क्षेत्रों में देखने को मिलती हैं, और इन घटनाओं के पीछे प्रेम एक बुनियादी कारण होता है, पर इसके और भी कारण हैं। महिलाओं के लिए लगातार भयावह होती जा रही इस दुनिया के बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। ऐसी घटनाओं को बार-बार दोहराया क्यों जा रहा है, अपराधी बेलगाम क्यों हुये जा रहे हैं? क्या कारण है कि बलात्कार, हत्या और अब तेजाबी हमलों के देशव्यापी विरोध के बाद भी ऐसी घटनाएँ प्रकाश में आ रहीं हैं।.......और विस्तार से इस लेख को पढ़ने के लिए ईमेल पते पर संपर्क कर सकते हैं
मनोज कुमार गुप्ता
शोधार्थी महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
ईमेल- manojkumar07gupta@gmail.com
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