Tuesday, 27 October 2015

आत्महत्या की ओर उन्मुखता : वैश्विक चिंता suicide, mental health

आत्महत्या की दिन ब दिन बढ़ती घटनाएं दुनिया भर में चिंता का विषय बनी हुई हैं। पिछले कुछ वर्षों में देखा जाय तो खुदकुशी के भयावह आंकड़े सामने आये हैं जो वास्तव में बेचैन कर देने वाले हैं। हाल में ही जारी विश्व स्वस्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार औसतन प्रत्येक 40 मिनट पर आत्महत्या से एक व्यक्ति की मौत हो जाती है। इस प्रकार देखें तो दुनिया भर में प्रति वर्ष 8 लाख लोग अवसाद और निराशा की आपात स्थिति में आकर स्वयं अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं। विश्व स्वस्थ्य संगठन ने इस चिंताजनक हालात को देखते हुये विश्व समुदाय से आह्वान किया है कि, दुनिया भर के उन तमाम लोगों को जो प्रतिपल किन्हीं कारणों से आत्महत्या करने को विवश हो रहे हैं, उन्हें रोकने के लिए सभी राष्ट्रों को एक ठोस रणनीति बनाकर उसके त्वरित क्रियान्वयन की सख़्त जरूरत है।
इस मामले में यदि हम भारत की स्थिति पर गौर करें तो वह और भी दुर्भाग्यपूर्ण है। खुदकुशी अथवा आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं और लगभग असहाय परिस्थितियों को देखते हुये यह भी कहा जाने लगा है कि, दुनिया में भारत खुदकुशी की राजधानी बनने की ओर अग्रसर हो रहा है। देश के समक्ष पहले से ही मौजूद कुपोषण, शिशु एवं मातृ मृत्यु दर तथा संक्रामक बीमारियों जैसी अन्य गम्भीर स्वास्थ्यगत समस्याएं मौजूद हैं, ऐसे में आत्महत्या जैसी गंभीर और व्यापक समस्या एक नयी चुनौती के रूप में दस्तक दे रही है। जिससे निपटना नितांत आवश्यक है। वर्ष 2012 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आत्महत्या को रोकने के उपायों पर तैयार पहली वैश्विक रिपोर्ट में दक्षिण पूर्व एशिया को सबसे ज्यादा आत्महत्या दर वाला इलाका बताया गया है, जिसमें भारत पहले पायदान पर है। यह दस्तावेज़ आत्महत्या, उसकी कोशिश और दुनिया भर में आत्महत्या जैसी घनाओं को टालने के सफल उपायों के बारे में विस्तृत जानकारी देती हुई अपने आप में सराहनीय है। साथ ही भारत में अत्महत्या के बढ़ते ग्राफ को कम करने हेतु एक व्यापक रणनीति बनाने पर भी रिपोर्ट में जोर दिया गया है।
चिकित्सा अधिकारियों एवं विशेषज्ञों के मुताबिक खुदकुशी करने वाले 90 प्रतिशत से अधिक लोग प्रायः मानसिक विकार से पीड़ित होते हैं, जिसका कारण उनमें निहित घोर निराशा या अवसाद ही होता है। अवसाद मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है। पहला इंडोजीनस अवसाद जो कि जैविक होता है एवं दूसरा रिएक्टिव यह हमारे जीवन से जुड़ी घटनाओं तथा क्रियाकलापों के परिणामस्वरूप परिलक्षित होता है। फिलहाल जो भी हो लेकिन आत्महत्या की कल्पना और उसे अंजाम देना मानसिक आपातकाल की सबसे खतरनाक स्थिति होती है। अवसाद न सिर्फ व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है बल्कि शारीरिक दुर्बलताओं के साथ ही अनेक विकारों को भी जन्म देता है। मनोचिकित्सकों का यह भी मानना है कि, खुदकुशी की बढ़ती घटनाओं के पीछे पारिवारिक असहयोग, सामाजिक यथास्थितियों और कई बार  समय पर इलाज न हो पाने जैसे कारकों को बिलकुल भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
तेजी से बदलती वैश्विक परिस्थितियों में मुकम्मल जिंदगी जीने की प्रतिस्पर्धा में खुद को बनाए रखने की जद्दोजहद लोगों को विभिन्न स्तरों पर समस्याओं और चुनौतियों का सामना करने को मजबूर कर रही है। चाहे वह नौकरी हो, परीक्षा में अच्छे अंक लाने का दबाव, तनावपूर्ण प्रेम अथवा वैवाहिक संबन्ध एवं कर्ज के बोझ जैसी तमाम सामाजिक स्तरीकरण और जटिलताएं, न चाहते हुए हमारी रोज मर्रा के जिंदगी का हिस्सा बन रही हैं। शायद यही उद्विग्नता व्यक्ति के मानसिक पटल पर धीरे-धीरे तनाव उत्पन्न करता है। जो मानसिक अस्थिरता और घोर निराशा को जन्म देता है जो लापरवाही या यूं कहें अनदेखी के चलते अंततः मानसिक अवसाद के चरमोत्कर्ष पर पहुंचकर बहुतायत ख़ुदकुशी अथवा आत्महत्या के रूप में परिलक्षित होता है।
मानसिक बीमारियों के प्रति जागरूकता फैलाने के साथ ही मनोविकारों व मानसिक विकृतियों को सक्रिय रूप से पहचानकर विश्व समुदाय के लोगों को अवसाद आदि से बचाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 10 अक्टूबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व मानसिक स्वास्थ्य महासंघ द्वारा विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य मानसिक स्वस्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाना और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े पहलुओं पर मिलकर काम करना। इसी क्रम में वर्ष 2015 का थीम ‘‘मानसिक स्वास्थ्य में गरिमा’’ (Dignity in mental health) रखा गया है और आशा की गयी है कि, ऐसी रणनीति या योजनाएं बनायी जाय जिसमें मानसिक रूप से बीमार लोगों को पूरे सम्मान के साथ जीने का अधिकार, उनके मानवाधिकार और स्वास्थ्य देखभाल की न्यायसंगत एवं समुचित व्यवस्था हो सके। जन जागरूकता कार्यक्रम, मानसिक तनाव से ग्रसित व्यक्तियों की देखभाल और उनके इलाज में तत्परता बरतने हेतु उनके परिवार, सगे संबंधियों को भी इसके लिए प्रेरित किया जाय। डॉक्टर शेखर सक्सेना जो कि संयुक्त राष्ट्र में मानसिक स्वास्थ्य और नशीले पदार्थों के दुरुपयोग सम्बन्धी विभाग के डायरेक्टर हैं, रिपोर्ट के हवाले से कहते हैं कि, विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी इस बात का पूरा भरोसा है कि आत्महत्या को रोका जा सकता है। महज एक समुचित और जिम्मेदार कदम उठाने की जरूरत है और यह तभी संभव हो सकता है जब इस मुहिम में मीडिया, सिविल सोसायटी और सरकार सभी अपनी भूमिकाओं को समझेंगे।
संदर्भ
·       Mental health action plan (2013-2020) ,World Health Organization 2013. ; ISBN 978 92 4 150602 1
·       Suicide: facts and figures
(file:///D:/UN%20reports/infographics_2014.pdf)
·       http://www.who.int/mental_health/suicide-prevention/en/
·       जीवन है अनमोल.. (आत्महत्या निषेध दिवस पर विशेष)
http://khabar.ndtv.com/news/zara-hatke/aatamhattya-diwas-339341(search-23/10/15: 6.30pm)
·       मन के इलाज से थमेगी आत्महत्या
http://hindi.vishvatimes.com/treatment-of-heart-thamegi-suicide/ (search- 21/10/15: 4.12pm)
·       http://hindi.webdunia.com/women-articles/world-mental-health-day-115101000034_1.html
·       http://www.edurelation.com/currentaffairs1.php?id=677
·       http://www.unmultimedia.org/radio/hindi/archives/3078/#.ViX2oH4rLIV
·       http://www.who.int/mental_health/world-mental-health-day/en/
·       http://www.dw.com/hi/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A4%AC%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%BE-%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82/a-17900511
·       http://www.jansatta.com/lifestyle/depression-is-the-cause-of-more-than-90-percent-suicide/43686/
·       विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10अक्टूबर)
(http://satyasheelagrawal.jagranjunction.com/2013/10/06/विश्व-मानसिक-स्वास्थ्य-द/)  



No comments:

Post a Comment