Thursday, 29 October 2015

नारीवाद (Feminism)


नारीवाद आज की दुनिया का एक प्रमुख नारा है। भारत में आज जिस प्रकार दलितवाद के एक नये उभार को देखा जा रहा है, दुनिया के पैमाने पर कमोबेश उसी प्रकार नारीवाद के उभार का इतिहास रहा है।
          नारीवाद का उदय फ्रेंच शब्द ''फेमिनिस्‍मे'' से 19 वीं सदी के दौर में हुआ। उस समय इस शब्‍द का प्रयोग पुरुष के शरीर में स्‍त्री गुणों के आ जाने अथवा स्‍त्री में पुरुषोचित व्‍यवहार के होने के संदर्भ में किया जाता था। 20 वीं सदी के प्रारम्भिक दशकों में संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका में इस शब्‍द का प्रयोग कुछ महिलाओं के समूह को संबोधित करने के लिए किया गया जो स्त्रियों की एकता, मातृत्‍व के र‍हस्‍यों त‍था स्त्रियों की पवित्रता इत्‍यादि मुद्दों  पर एकजुट हुई थी। बहुत जल्‍द ही इस शब्‍द का राजनीतिक रुप से प्रयोग उन प्रतिबद्ध महिला समुहों के लिए किया जाने लगा जो स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन के लिए संघर्ष कर रहीं थी। उनकी इस बात में गहरी आस्‍था थी कि स्त्रियां भी मनुष्‍य हैं। बाद में इस शब्‍द का प्रयोग हर उस व्‍यक्ति के लिए किया जाने लगा जो यह मानते थे कि स्त्रियां अपनी जैवकीय भिन्‍नता के कारण शोषण झेलती हैं और उन्‍हें कम से कम कानून की दृष्टि में औपचारिक तौर पर समानता दिये जाने की जरुरत है। इसके बावजूद कि यह हालिया विकसित किया गया शब्‍द है, 18वीं सदी के कई लेखकों एवं चिंतकों जैसे मेरी बुल्‍सटनक्राफ्ट, जॅान स्‍टुअर्ट मिल बेट़टी फ्रायडन इत्‍यादि को उनके उस दौर में स्‍त्री प्रश्‍नों के इर्द-गिर्द विमर्श करने के कारण ''नारीवादी'' माना जाता हैा
          नारीवाद ने जेंडर पहचान के निर्माण के विषय में अनेकानेक विचार प्रदान किये है और महिलाओं की शक्तिहीनता उत्‍पीड़न तथा आधीनीकरण की व्‍यवस्थित सैद्धातिक व्‍याख्‍या दी है। सभी नारीवादी चिंतक एवं लेखक इस शब्‍द के प्रयोग के पहले से इस कल्‍पना को जीते आये है कि एक दिन ऐसी दुनिया होगी जहां स्त्रियां अपनी व्‍यक्तिगत क्षमता को पहचान सकेगी। इसकी रुपरेखा बनाते हुए कुछ विचारकों ने इसे अवधारणात्‍मक रुप भी प्रदान किया हालांकि लम्‍बे समय तक नारीवादी ज्ञान को अनौपचारिक तथा अवैध समझा जाता रहा।आधुनिक नारीवादियों के लिए यह अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण कार्य था कि वे नारीवादी विचारों को स्त्रियों के व्‍यापक समूहों के बीच प्रसारित करते हुए उसके प्रति आस्‍था पैदा करें। साथ ही यह भी महत्‍वपूर्ण था कि कई स्त्रियां विभिन्‍न कारणों से स्‍वयं का नारीवादी कहलाना पसंद नहीं करती थीं।
          यह भी सत्‍य था कि कोई भी स्‍त्री जो स्‍वयं को नारीवादी कहलाना पसंद करे उसकी अनिवार्यता एक ही विचार में आस्‍था रखना हो यह भी आवश्‍यक नहीं। मतों के इस विविधता को एक ही विचारधारा में समाहित करना लगभग असंभव है।  इसलिए इसके अच्‍छे बुरे अनेक कारणों की वजह से नारीवाद शब्‍द का बहुवाचिक तथा बहुसन्‍दर्भिक प्रयोग अनिवार्य हो गया। इसीलिए इन वर्षो में नारीवाद का विभिन्‍न धाराओं में बंट जाना एक सामान्‍य बात थी। ये धारायें अक्‍सर बिल्‍कुल अलग-अलग परिकल्‍पनाओं और पहलुओं को प्रतिबिम्बित करती हैं । लेकिन नारीवाद की सभी धारायें समाज में हो रहें स्‍त्री शोषण को समाप्‍त करने के मुख्‍य लक्ष्‍य पर एक मत है। इस प्रकार नारिवाद निम्नलिखित धाराओं/सिद्धांतों के साथ अग्रसर है।   
          उदारवादी नारीवाद, मार्क्‍सवादी/समाजवादी नारीवाद, उग्र नारीवाद, अश्‍वेत नारीवादी, पर्यावरणीय नारीवादी, उत्‍तर आधुनिक नारीवाद, लेस्बियन नारीवादी जैसी कई धारायें हैं जिनमें से पहले की तीन-चार सैद्धान्तिक विचारधारायें है जिन पर ज्‍यादा चर्चा की जाती है।


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