Saturday, 31 October 2015

नारीवादी सिद्धांत (Feminist Theory)

मुख्य रूप से नारिवाद एक विचारधारा है जो स्त्री प्रश्नों के इर्द-गिर्द विमर्श की शुरुआती संकल्पनाओं के क्रम में स्थापित हुई। नीचे दी गयी कुछ प्रमुख नारीवादी विचार अथवा धाराओं के माध्यम से नारिवाद की सैद्धांतिकी को समझने का प्रयास किया गया है।
·       उदारवादी नारीवाद (Liberal Feminism)
          आधुनिक राष्‍ट्र राज्‍य के उदय व विकास के साथ-साथ पश्चिम के समाजों में कट्टर पितृसत्‍तात्मक विचारों ने महिलाओं की स्थिति को प्रभावित किया आधुनिक राष्‍ट्र राज्‍य की विचारधारा उदारवाद, व्‍यक्तिवाद पर जोर देती है लेकिन यह उदारवाद पुरुष और स्‍त्री में लिंग के आधार पर भेदभाव करता रहा है।1 ''हान्‍स और लाफ ने नारी को कुछ अधिकार तो दिया परन्‍तु उसको पुरुष के अधीन रखा। रुसो का विश्‍वास था कि नारी में राजनीतिक क्षेत्र में नीति निर्धारण जैसे काम करने की योग्यता ही नहीं थी।
          उदारवादी नारीवाद का इतिहास पितृसत्‍ता के अन्‍य सिद्धान्‍तों के इतिहास से लंबा है। उदारवादी नारीवाद स्‍त्री पुरुष की समानता के सिद्धान्‍त पर आधारित है।
          अठारहवीं सदी की प्रारम्भिक उदारवादी नारीवादियों ने मानवीय गरिमा और समानता की उदारवादी धारणाओं और महिलाओं के जीवन की वास्‍तविक हकीकत के बीच व्‍याप्त अंतरविरोधों को प्रखरता के साथ सामने रखा था। जेंडर पर आधारित विभेद और परिवार तथा समाज में महिलाओं की दोयम स्थिति को तर्कसंगत ठहराने वाली आम धारणाओं को सामाजिक अनुकूलन और जड़ीभूत सांस्कृतिक मूल्‍यों की उपज के तौर पर समझने की भी उसने कोशिश की। समानता और न्‍याय की धारणाओं के संदर्भ में उसने विवाह नामक संस्‍था के मुल्‍यांकन का प्रयास किया। उदारवादीनारीवाद उदारवाद की दार्शनिक परम्‍पराओं का अनुगमन करता है। जो 17 वीं सदी के परवर्ती काल से 18 वीं सदी के परवर्ती काल तक पश्चिमी जगत में संपन्‍न सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक बदलाओं की उपज थीं। वैज्ञानिक खोजों और नियमों में प्रगति के चलते परम्‍परा की तुलना तर्क विधान को अधिक महत्‍व दिया गया। रूपांतरण के इस दौर को विवेक का युग या प्रबोधन का युग कहते हैं। इस काल में सामाजिक-आर्थिक बदलाओं ने सामाजिक विस्‍थापन को जन्‍म दिया जिसकी परिणति चर्च की पारम्‍परिक अधिसत्‍ता, कुलीनवर्ग और धनी तबकों को चुनौती देने वाले सिद्धान्‍तों के रूप में हुई। वे सभी समूह व तबके जिन्‍हें पूर्ण नागरिकता से वंचित किया गया था उनमेंसबसे सुस्‍पष्‍ट मामला औरतों का था जिनका अलगाव मताधिकार और कानूनी समानता से बहिष्‍कार की दार्शनिक दलीलों पर आधारित था।

मुख्‍य समर्थक और उनके विचार-
          उदारवादी नारीवादियों में पुरुष स्‍त्री दोनों ही आते हैं। पंद्रहवी सदी में इटली की क्रिस्‍टीन डी पिजान (Christina de Pizan) ने पहले बार लिंगों के आपसी संबंधों के बारे में लिखा जेरेमी बैंथम ने 1781 में अपनी पुस्‍तक (Introduction to the Principles of Morals and Legislation) में स्त्रियों को उनके कमजोर बुद्धि का बहाना बनाकर अधिकारों से वंचित करनेकी कई राष्‍ट्रों की मंशा की आलोचना की। उन्‍होंने नारी को मतदान देने के अधिकार, सरकार में भागीदारी के अधिकार की हिमायत की। इस धारा में मेरी वोलस्‍टोनक्राफ्ट (Mary Wollstonecraft), हैरियट टेलर, जान स्‍टुवर्ट मिल, बैट्टी फ्राइडन ग्‍लोरिया स्‍टेनम व रेबिका वाकर आदि आते हैं।
          मेरी वुल्‍सटनक्राफ्ट महिलाओं के व्‍यक्तित्‍व के विकास पर जोर देती हैं। इसके लिए वह समान शिक्षा की वकालत करती है। उनका मानना था कि यदि पुरुषों को महिलाओं की तरह बंद वातावरण में रखा जाय तो वे भी महिलाओं की तरह व्‍यवहार करेंगे। 1792 में लंदन से पहली बार प्रकाशित अपने लेख  ''Vindication of the Right of Women''में उन्‍होंने महिला अधिकारों को जोर दार ढंग से हिमायत की। लड़के और लड़कियों के लिए आदर्श शिक्षा के रूसों के विचारोंका उन्‍होंने प्रतिवाद किया।
          स्‍त्री मताधिकार की वकालत के पीछे मिल का विश्‍वास था कि स्‍त्री मताधिकार से समाज को बहुत लाभ होगा स्‍त्री के मानस में स्‍वयं के पास मताधिकार होने से जिम्‍मेदारी का एहसास भी पनपेगा तथा परिवार के भीतर कानूनी असमानता समाप्‍त हो जाने से परिवार एक शैक्षणिक संस्‍था बन जायेगा। परन्‍तु Susan MallerOkinका कहना है कि हैरिमट टेलर की स्‍त्री असमानता की गहनता के बारे में समझ मिल से अधिक गहन थी तथा उनके विचार मिल से अधिक नारीवादी थे। The Subjection of Womenमें मिल विवाहित महिलाओें के नौकरी पेशा होने के सुझाव को इस आधार पर खारिज कर देते हैं कि ऐसा करने से घर बरबाद हो जायेगा व बच्‍चें की परिवरिश पर कु-असर पडेगा वही सुजन मौलर के अनुसार हैरियट टेलर विवाहित तथा तलाकशुदा दोनों स्थितियों में महिला की आर्थिक आत्‍मनिर्भरता की समर्थक थीं। 'द फैमिनाइन मिस्‍टीक' में बेट्टी फ्राइडन ने भी समस्‍त सुविधाओं से सम्‍पन्‍न औद्योगिक समाजों में आमगृहणी महिला की घुटन को उजागर किया।

          जिस समय में ये शुरूआती उदार नारीवादी विचार सामने आए उस युग के हिसाब से वे काफी रेडिकल थे। इन विचारोंकी परिणतिविशेष स्‍कूलोंकी स्‍थापना शिक्षा में महिलाओंकी भागीदारी और मजदूरी काम की स्थितियाँ ट्रेड यूनियन और अन्‍य संगठनों को प्रेरित करते महिला मताधिकार संगठनों की स्‍थापना में हुई। 
·       समाजवादी/मार्क्‍सवादी नारीवाद(Marxist Feminism)
          बीसवीं शताब्‍दी के उत्‍तरार्ध में पूँजीवादी व्‍यवस्‍था तथा उद्योगों के विकास के साथ-साथ नारी की घर गृहस्‍थी के इतर भी सहभागिता बढ़ने लगी। दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद वेतन भोगी तथा उच्‍च शिक्षण संस्‍थाओं में महिलाओं की संख्‍या में इजाफा होता गया। 1956 में हंगरी में सोवियत यूनियन की दादागिरी के विरूद्ध हुए विद्रोह के बाद लेफ्ट आंदोलनों में महिलाएं सक्रिय थीं, लेकिन इन वामपंथी संगठनों का चरित्र भी पितृसत्‍तात्‍मक था। जब 1960 के दशक में न्‍यू लेफ्ट आंदोलन में सक्रिय महिलाओं ने समानता की मांग की तो नेतृत्‍व ने बचकानी हरकत मानकर इन्‍हें किनारे कर दिया। और यहीं से पश्चिम में उभरे नारीवाद का दूसरा चरण प्रारम्‍भ हुआ।
समर्थ और उनके विचार
          बारबरा (Barbara Ehranrich) अपने लेख समाजवाद क्‍या है? में मार्क्‍सवादी व नारीवाद के समाज में शोषण पर विवेचना कर कुछ तुलनात्‍मक निष्‍कर्ष निकालते हुए लिखती हैं कि जिस प्रकार मार्क्‍सवाद लोकतंत्र व बहुलवाद के वास्‍तविक चरित्र को उजागर करता है उसी प्रकार नारीवाद पुरुष के दमन के वास्‍तविक चरित्र जो वृत्ति और रोमांटिक प्रेम की भीनी चादर से ढका रहता है को उघाड़ता है। जब नारीवादियों ने लिंग आधारित इस सर्वव्‍यापी असमानता का कारण खोजने की कोशिश की तो सबसे पहले दोनों की शारीरिक संरचना को इसका आधार बताया गया। पुरुष अपने शारीरिक बल का दुरूपयोग नारी को दबाने के लिए करता है। बारबरा आगे कहती है मार्क्‍सवाद और नारीवाद को मिलाकर ही समाजवादी नारीवाद की विचारधारा विकसित हुई है। जिस प्रकार मार्क्‍सवाद पूँजीवाद के आर्थिक आधार पर ऊँगली उठाता है ठीक इसी प्रकार समाजवादी नारीवाद सवर्त्र व्‍याप्‍त लिंग आधारित असमानता को पूँजीवादी समाज की विशेषता मानता है। इस असमानता की वजह से स्‍त्री को  घर और बाहर दोनों जगह शोषण झेलना पड़ता है, काम का विभाजन लिंग के आधार पर किया जाता है तथा इनके द्वारा किये गये कामों को कमतर माना जाता है।
          समाजवादी नारीवादियों की समाज के बारे में सोच केवल अर्थव्‍यवस्‍था तक सीमित नहीं है। इनका मानना है कि उत्‍पादन प्रक्रिया में प्रजनन कर्म  (जो घर में नारी द्वारा किया जाता है) आता है। लिंग के आधार पर विभाजित श्रम एक तरह से नारी पर थोपा जाता है। इसी प्रकार पितृसत्‍तात्‍मक समाज में नारी के यौन संबंधी कार्य भी पुरुषों की मर्जी के अनुसार निर्धारित होते रहे है। ये मानते है कि स्‍वतंत्र प्रजनन व यौन कर्म के लिए शोषण को समाप्‍त करना आवश्‍यक है, यह तभी हो सकता है जब पूँजीवादी व्‍यवस्‍था तथा पितृसत्‍ता का अंत हो। इस प्रकार समाजवादी नारीवाद सार्वजनिक व निजी क्षेत्र उनमें क्रमश: पुरुष और स्‍त्री की प्रधानता की उदारवादी व्‍याख्‍या को नहीं मानते है।
          मार्क्‍स ने हालांकि महिलाओं के प्रश्‍न को प्रत्‍यक्ष सम्‍बोधित करने की कोशिश नहीं की थी और दरअसल, महिलाओं को बराबरी से वोट डालने देने के अधिकार पर चले संघर्ष को महज बर्जुआ सुधारवादी आंदोलन का ही रूप कहा था। 'शोषण', 'अलगाव' और 'वर्ग' जैसी मार्क्‍स की धारणायें महिलाओं की स्थिति को समझने में काफी सहायक सिद्ध हुई। इसके अलावा 1884 में फ्रेडरिक एंगेल्‍स द्वारा रचित पुस्‍तक ''परिवार, निजी संपत्ति और राज्‍य की उत्‍पत्ति'' भी थी जिसमें उन्‍होंने मार्क्‍स से विपरीत महिलाओं के उत्‍पीड़न के सवाल को ज्‍यादा योजना बद्ध ढंग से हल करने की कोशिश की थी। इनका कहना था कि महिलाओं के गुलामी के प्रश्‍न को जीवविज्ञान के बजाय इतिहास में समझना होगा और अपनी रचना में उन्‍होंने इस उत्‍पीड़न को स्‍पष्‍ट करने की कोशिश की थी। महिलाओं पर खुद को केंद्रित करते हुए समाजवादी नारीवादियों ने इस बात को दर्शाया कि किस तरह पूँजीवादी पितृसत्‍ता में महिलाएं समाज के पुनरूत्‍पादन के लिए निहायत जरूरी काम संपन्‍न करती है। जिन घरों में एक साल से छोटा बच्‍चा हो वहां महिलाओं का घरेलू श्रम प्रति सप्‍ताह 70 से 77 घंटे पहुँच जाता है और महिलाएं भले घर के बाहर काम करती हों तब भी इसमें कोई कमी नहीं आती। पुनरूत्‍पादन के संबंध जहां इस किस्‍म के वातावरण में फलते-फूलते हो वहां इतने लम्‍बे काम के लिए महिला को कोई मुआवजा भी नहीं मिलता। 1970 के दशक में कुछ समाजवादी नारीवादियों ने घरेलू काम के लिए वेतन की मांग की थी यह आंदोलन इटली से आरम्‍भ होकर धीरे-धीरे कनाडा व युरोप तक फैल गया, खूब बहसे हुई लेकिन 80 के दशक में यह मुरझा गया।
          समाजवादी नारीवाद की रणनीति की व्‍याख्‍या शिकागो वीमेन्‍स लिबरेशन युनियन के चैप्‍टर (Chicago Women's Liberation Union) (1972) में की गयी। इसके अनुसार समाजवादी नारीवादी मानते हैं कि पूँजीवादी व्‍यवस्‍था में पूँजीवादी वर्ग का वर्चस्‍व व दमन संस्‍थाओं के माध्‍यम से व्‍यवस्थित तरीके से सुनिश्चित किया जाता है। इसकी वजह समाज में वर्गों के आपसी सम्‍बन्‍ध प्रतिकूल हो गये हैं। केवल संगठित होकर इस व्‍यवस्‍था के विरूद्ध संघर्ष किया जा सकता है। समाजवादी नारीवादी संघर्ष यौनिकता के विरूद्ध है। यह उन सब संस्‍थाओं, सामाजिक रिश्‍तों तथा विचारों के विरूद्ध संघर्ष है जो महिलाओं को आपस में बांटते है तथा पुरुषों के अधीन रखते है और असहाय बनाये रखते हैं। समाजवादी नारीवादी संघर्ष की मुख्‍य प्राथमिकता महिलाओं की तत्‍कालीन स्थिति सुधारना थी ताकि वर्तमान स्थिति सुधरने पर वे अपनी दीर्घावधि की स्थिति में सुधार की संभावनायें देख सकें।
तीसरी दुनिया में समाजवादी/मार्क्‍सवादी नारीवाद
          भारत जैसे विकासशील देश में वर्ग और गरीबी जैसे मुद्दे की ज्‍यादा अ‍हमियत दिखती है। पश्चिम के समाजवादी नारीवादियों की तरह कई सारे भारतीय नारीवादी वर्ग के मुद्दे पर ज्‍यादा सचेत दिखते हैं और इसी बात पर खुद को केंद्रित करते हैं कि मजदूर वर्ग  और गरीब महिलाएं किस तरह दोहरे शोषण का शिकार होते हैं। तीसरी दुनिया की महिलाओं पर वैश्‍वीकरण के प्रभावों का समाजवादी नारीवादियों ने विश्‍लेषण किया है। लेस (Lace) बनाने के भारतीय उद्योग का विस्‍तार का अध्‍ययन करते हुए मारिया मीस का एक अध्‍ययन बताता है कि किस तरह वैश्विक बाजार के लिए लेस बनाने के भारतीय महिलाओं के काम का यह कहकर अवमूल्‍यन किया गया कि यह फुरसत के समय में संपन्‍न किया जाने वाला काम है। जबकि वे ठेकेदार जो इसे बेचने का कार्य सम्‍पन्‍न करते हैं उन्‍हें श्रमिक के तौर पर देखा जाता है। पूँजीवादी औद्यो‍गीकरण का एक दूसरा प्रभाव पर्यावरण की तबाही के रूप में भी सामने आया है, भारत में महिलाओं का एक बड़ा तबका असंगठित क्षेत्र में काम करता है तथा उनका शोषण भी होता है इसलिए इस अत्‍यंत बडे असंगठित क्षेत्र पर ध्‍यान केंद्रित करते हुए भारत में समाजवादी नारीवादियों ने घरों से काम करने वाली महिलाओं को संगठित करने के प्रयास किए हैं, महिला खेतिहर मजदूरों के लिए खासतौर से जमीन के स्‍वामित्‍व की मांगे उठाई है, जैसे बोध गया संघर्ष में हुआ, और महिला मजदूरों की ट्रेड युनियने बनाने के प्रयत्‍न किये है।
·       रेडिकल या उग्रवादी नारीवाद(Radical feminism)
          रेडिकल नारीवाद का नाम सुनते ही ज्‍यादातर लोगों की आंखों के सामने पुरुषों के अत्‍याचार के विरूद्ध नारे लगती उभयलिंगी महिलाओं की भीड़ नमूदार हो जाती है, दरअसल 'रेडिकल नारीवाद' में निहित रेडिकल शब्द का अर्थ अतिवादी या हठधर्मी बिल्‍कुल नहीं है इसकी उत्‍पत्ति 'जड़' के लिए बने लैटिन शब्‍द से हुई है। रेडिकल नारीवादी सिद्धान्‍त में पुरुषों द्वारा महिलाओं के उत्‍पीड़न को समाज में व्‍याप्‍त सब प्रकार के सत्‍तासंबंधों की गैर बराबरी की जड़ में देखा जाता है। इनके अनुसार महिलाओं की यौनिकता और प्रजनन की क्षमता दोनों महिलाओं की शक्ति और उनके उत्‍पीड़न के जड़ में होते हैं।
ऐतिहासिक पृष्‍ठभूमि – लगभग साठ के दशक के उत्‍तरार्द्ध में तथा सत्‍तर के दशक की शुरूआत में आंशिक तौर पर उदारनारीवाद के खिलाफ प्रतिक्रिया के तौर पर और अंशत: लिंगवाद के खिलाफ आक्रोश के तौर पर संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका और ब्रिटेन में रेडिकल नारीवाद का उदय हुआ। ज्‍यादातर प्रारम्भिक रेडिकल नारीवादी नागरिक अधिकार तथा युद्धविरोधी आंदोलनों पर केंद्रित नववामपंथी संगठनों में शामिल रहे जहां उन्‍हें पारम्‍परिक संस्‍थाओं की तरह लैंगिक भेदभाव और औरतों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति का सामना करना पड़ा। प्रतिक्रियास्‍वरूप पुरुष वर्चस्‍व वाले संगठनों को छोड़कर अपने संगठन खडे किये। शुरूआती रेडिकल नारीवादी समूह 'कटु बोलने' के माओवादी व्‍यवहार पर आधारित 'चेतना बढ़ाने' के काम में लगे छोट-छोटे समूह थे। इनके ज्‍यादातर सदस्‍य थे जो व्‍यवस्‍था से अलग-थलग पड़े थे और बदलाव के लिए बेचैन थे।
विचारक, समर्थक एवं अवधारणाएं –
आधुनिक रेडिकल नारीवादी सिद्धान्‍त के उदय में कुछ पुस्‍तकों ने अहम भूमिका अदा की पहली सिमोन द बोऊवार की पुतक 'द सेकेंड सेक्‍स' थी जो 1949 में फ्रेंच में और 1953 में अंग्रेजी में प्रकाशित हुई। इसने नारीवादी की नई जमीन तोड़ने का कार्य किया। बोऊवार का कहना था कि सेक्‍स को जेंडर से अलग समझा जाना चाहिए और महिलाओं का उत्‍पीड़न जेंडर के कारण है। वो कहती है कि 'कोई महिला के तौर पर पैदा नहीं होती बल्कि उसे बनाया जाता है।' महिलाओं की जीवविज्ञान विशेषकर उनकी प्रजन्‍न क्षमता पुरुषों और महिलाओं में चंद अनिवार्य फर्क को जन्‍म देती है लेकिन इसका मतलब यह कत्‍तई नहीं होता कि वह दोयम दर्जे का सूत्रपात करे। द बोऊवार का कहना था कि महिलाओं और पुरुषों को जेंडर की संरचना बदलने की कोशिश करनी चाहिए जिससे लिंगों के बीच समान संबंध बनाये जा सकें। कार्ल मिलेट की सेक्‍सुअल पॉलिटिक्‍स 20वी सदी के फ्रेंच, अमेरिकन अंग्रेजी साहित्‍य में व्‍याप्‍त यौन संबंधी विषय वस्‍तुओं का विद्वतापूर्ण अध्‍ययन प्रस्‍तुत करती है, मिलेट ने यौन क्रीडाओं के पुरुषों द्वारा वर्णन में समाहित सत्‍ता संबंधों को बखूबी दिखाया है। वे बोऊवार की इस बात से इत्‍तेफाक रखतीं हैं कि पितृसत्‍ता का निर्माण पुरुषों ने किया और हमें इसी तरह पाला पोसा जाता है कि हम उसे स्‍वाभाविक मान लेते हैं।
शूलामिथ फायरस्‍टोन की किताब ''द डायलेटिक्‍स ऑफ सेक्‍स'' की शुरूआत ही इन वाक्‍यों से होती है ''सेक्‍स वर्ग की श्रेणी इतनी गहराई तक पहुँची है कि वह लगभग अदृश्‍य सी जान पड़ती है'' यह वक्‍तव्‍य रेडिकल नारीवाद की व्‍यापक अंतर्दृष्टि को अभिव्‍यक्ति देता है। इनका तर्क था कि महिलाओं की जीवविज्ञान उनकी अधीनता की जड़ में है। गर्भधारण, बालजन्‍म और बच्‍चों के लालन-पालन की समस्‍याओं के कारण महिलाएं प्राकृतिक स्थिति में खुद को कमजोर महसूस करती रही हैं। नतीजन वे पुरुषों पर निर्भर रहने लगी। और इसी का फायदा उठाकर पुरुषों ने अधीनता के सार्वभौम ढांचे का निर्माण किया और जारी रखा भले ही इस निर्भरता की जड़ में निहित जीववैज्ञानिक कारण बीत चुके हों। इन संरचनाओं में निहि‍त है, रोमांटिक प्रेम और आदर्श विवाह के मिथक और वह पुरुष संस्‍कृति जो महिलाओं को निष्क्रिय बनाती है और यौन आकर्षण बनाये रखने की न पूरी होने वाली मांगों के लिए लगातार प्रयास करने के लिए मजबूर करती हैं। इस उत्‍पीड़न को समाप्‍त करने के लिए फायरस्‍टोन प्रजनन में स्‍त्री की भूमिका बिल्‍कुल समाप्‍त कर देने का प्रस्‍ताव रखती है। उनका कहना है कि इस 'लिंग वर्ग' प्रणाली के उत्‍पीड़न का खात्‍मा एक टेक्‍नोलॉजिकल क्रांति के जरिए संभव हो सकता है।
रेडिकल नारीवाद पितृसत्‍ता के विरोध के मसले पर एकजुट हैं, विभिन्‍न संस्‍कृतियां भले ही विभिन्‍न मूल्‍यों को प्रतिपादित करें लेकिन आमतौर पर पुरुषों को 'दिन, वस्‍तुनिष्‍ठ, सकारात्‍मक आदि और महिलाओं को पुरुषों के प्रतिलोम के तौर पर 'कमजोर, रात, बचकानी, भावुक' आदि समझा जाता है। रेडिकल नारीवाद के तहत मुख्‍य कार्य महिला संस्‍कृति के मूल्‍य को स्‍थापित करना जो मृत्‍यु के बजाय जीवन को अहमियत देती हो तथा महिलाओं के काम और गुणों को रेखांकित करती हो। ये नारी संस्‍कृति के उन सभी पहलुओं का निषेध करता है, जो महिलाओं को पराधीन रखते हों।
मातृत्‍व के आंशिक अपवाद को छोड़ा जाय तो पुरूष संस्‍कृति महिलाओं को इसी कदर परिभाषित करती है कि वे मर्दों की वासनापूर्ति का महज माध्‍यम है। रेडिकल नारीवादी बलात्‍कार को एक राजनीतिक कर्म समझते है जो कई स्‍तरों पर उत्‍पीड़नकारी होता है। सुसान ग्रिफिथ लिखती हैं, ''कानून की निगाह से देखा जाय तो बलात्‍कार को शारीरिक अपराध के पहलू के रूप में ही समझा जाता है। इसके बजाय, यह एक इनसान के रूप में महिला के वजूद को मिटाने वाला अपराध होता है'' बलात्‍कार नारीत्‍व के अपराध की सजा है।
कैथरीन मैक्‍कीनान के मुताबिक ''जेंडर असमानता के नाभिक में यौनिकता का सवाला आता है''।
यौनिकता तथा जेंडर दोनों ''निजी जीवन'' ही नहीं बल्कि समूचे सामाजिक जीवन का सरोकार बनते हैं इस महत्‍वपूर्ण बिंदु पर रोशनी डालने में रेडिकल नारीवाद के अहम योगदान को स्‍वीकारना ही पडेगा। व्‍यक्तिगत ही राजनीतिक है यह रेडिकल नारीवादी आंदोलन का सबसे महत्‍वपूर्ण नारा रहा है। यह नारा घर के अंदर और घर के बाहर की संरचना में निहित जेंडर उत्‍पीड़न के अंतरसंबंध की पड़ताल करता है। यह इस बात को समझने में भी हमारी मदद करता है कि राज्‍य नियंत्रण के दायरे को बढ़ाने का प्रस्‍ताव किस तरह नारी समस्‍या का समाधान नहीं है।
रेडिकल नारीवाद का विश्‍लेषण इसी बात को दर्शाता है कि महिलाओं को चाहिए कि वे जबरन मातृत्‍व और यौन गुलामी के पिंजरे से आजाद हों। रेडिकल नारीवाद का फौरी उद्देश्‍य यही बनता है कि महिलाएं अपने शरीर पर नियंत्रण कायम कर लें।
विवाह जैसी पितृसत्‍तात्‍मक संस्‍था को खारिज करने के बाद रेडिकल नारीवादियों ने औरतों में समलैंगिकता की हिमायत की। शार्लोट बंच लिखती है, समलैंगिक होने का अर्थ है विषमयौनिकता के साथ जुडाव उस पर निर्भरता और उसके समर्थन का निषेध ये पितृसत्‍ता के हर प्रतीक को अपने हमले का निशाना बनाते हैं। जिसमें बुर्के को बेपर्द कराना (इस्‍लाम की पुरुष संस्‍कृति पर प्रतीकात्‍मक हमला) सौदर्य प्रतियोगिता पर हमला (महिलाओं के यौन वस्‍तुकरण की प्रतीक) और नामिकीय बिजलीधर आदि उपक्रमों का विरोध शामिल होते हैं।
रेडिकल नारीवादी स्‍त्री को अपने शरीर पर नियंत्रण की बात पर जोर देते हैं।  इसी के चलते एलिसन जैग्गर कहती है कि अपने शरीर पर नियंत्रण के लक्ष्‍य के बजाय रेडिकल नारीवाद को चाहिए कि वह स्‍त्री के अपने जीवन पर नियंत्रण के पहलू को केन्‍द्र में रखे जिसे महिला संस्‍कृति के सृजन के जरिए हासिल किया जा सकता है। इन सबके बावजूद यह कहा जा सकता है कि रेडिकल नारीवाद ने नारीवादी सिद्धान्‍त को गहरे से प्रभावित किया है। वह इस बात को भी अंतरदृष्टि प्रदान करता है कि महिलाओं के जीवन के सभी पहलू राजनीतिक होते है। यथार्थ के विश्‍लेषण के पारंपरिक तरीकों के प्रति रेडिकल नारीवाद एक बुनियादी चुनौती प्रस्‍तुत करता है। उसने इस बात को बेपर्द किया है कि जेंडर पुरुष वर्चस्‍व की योनाबद्ध प्रणाली है।

·       इको फेमिनिज़्म  (पर्यावरणीय नारीवाद) (Eco-Feminism)
पर्यावरणीय नारीवाद रेडिकल नारीवाद का विस्‍तार है। इनके अनुसार स्‍त्री की अधीनता पुरुष द्वारा लैंगिक शोषण है। इस प्रवृत्ति ने पुरुष और स्‍त्री के बीच स्‍वाभाविक जैविक भिन्‍नताओं पर जोर दिया है। यह धारा जोर देती है कि स्त्रियों में कुछ गुण निहित है जैसे- प्रकृति से निपटता, पालन-पोषण करने के गुण, जनवादी और इकठ्ठे रहने की भावना व शांति बनाये रखना। इस प्रकृति के अनुसार पुरुष के निहित गुण हिंसा और दूसरों पर हावी होना। नारीवाद ने पृथ्‍वी पर पितृसत्‍तात्‍मक प्रभुत्‍व के वर्णन द्वारा पर्यावरण के बारे में एक राजनीतिक समझ पैदा की है। (Women empowermental Network मई 1997) यह आंदोलन को  पर्यावरणीय, नारीवादी और स्‍त्री आध्‍यात्मिक आंदोलन के एक केन्‍द्र बिंदु के रूप में देखा जा सकता है। हालांकि इस झुकाव ने पर्यावरण को नष्‍ट करने वाली योजनाओं के विरूद्ध आवाज उठाई है। महिलाएं पेड़ों को बचाने के लिए गीत गाते हुए आंदोलन करती थी यह जंगल हमारा मायका है।
हम अपनी पूरी ताकत से इसे बचाऍंगी
1960 और 1970 के दशकों में यह आम बात थी कि सभी महिला आंदोलन और पीड़ित महिलाओं का प्रतिनिधित्‍व करने वाले भूमंडलीय बहनचारे (Global Sisterhood) की दुहाई देते थे। परन्‍तु यह जल्‍दी ही स्‍पष्‍ट हो चुका था कि इस प्रकार के सार्वजनिक दावे पश्चिमी जगत के दायरे में भी झूठे थे। ये आन्‍दोलन तथा विचारधारायें वास्‍तव में श्‍वेत, मध्‍यमवर्गीय एवं विषमलैंगिक कामना वाली (heterosexual) महिलाओं के अनुभवों पर आधारित थे। यूरोप और अमरीका में ब्‍लैक नारीवादी अपने-अपने देशों में आंदोलनों में बहिस्‍करण एवं नक्‍सलवाद के कई स्‍वरूपों को पहचानने और नामजद करने की प्रक्रिया शुरू की 1960 तक संयुक्‍त राज्‍य अमरीका के ब्‍लैक नारीवादियों की पुकार अन्‍य नारिवादियों तक पहुँच चुकी थी। मन मुटाव का एक और कारण यह था कि महिला आंदोलन लैंगिक भेदभाव (Sexism) पर पूरी तरह से केंद्रित था, जबकि ब्‍लैक महिलायें अपने को नक्सलवाद बनाम लिंगवाद की दुविधापूर्ण रस्‍साकशी में फंसा पाती थीं। प्रसिद्ध ब्लैक महिला लेखिका एलिस वॉकर ने नारीवादी (Feminist) के विकल्‍प में 'वूमिनिस्‍ट (Womanist) शब्‍द का निर्माण किया ताकि ब्‍लैक और श्‍वेत नारीवादी की भिन्‍नता को चिन्हित किया जा सके। श्‍वेत महिला संगठनों द्वारा आयोजित 'रात को वापस लो' जुलूस अक्‍सर ब्‍लैक-बाहुल्‍य बस्तियों से गुजरता था। जिससे अमरीकी समाज में ब्‍लैक पुरुषों के बारे में  जो पूर्वाग्रहपूर्ण मिथक थे। उन्‍हें बल मिलता था। इन विवरणों से स्‍पष्‍ट हो जाता है कि नारीवादी विचारधारा में ब्‍लैक महिलाओं की स्थिति कितनी जटिल व दुविधापूर्ण रही होगी। जिससे ब्‍लैक नारीवादी विचारधारा आयी।
लेस्बियन नारीवादियों ने महिला आन्‍दोलन की आलोचना एक अलग ही नजरिये से की। उनकी पहली शिकायत यह थी कि मुख्‍यधारा के नारीवादी स्‍त्री-पुरुष संबंधों पर अत्‍यधिक ध्‍यान देते रहे और स्‍त्री-स्‍त्री के सम्‍बन्‍धों के प्रति उदासीन रहे। ये चाहते थे कि अन्‍य नारीवादी भी यह स्‍वीकारें कि लेस्बियन संबंध (स्त्रियों में आपसी रिश्‍ते) का मुद्दा केवल यौनिकता ही नहीं दैनिक जीवन के हर पहलू से जुड़ा हुआ है।
·       संयोजन
उदारवादी नारीवाद ने जेंडर विभेदीकरण को सामाजिकरण की उपज के रूप में देखा है और इसलिए उन्‍होंने महिला समानता के लिए सफल अभियान चलाया है।  हालांकि उनकी मांगे कानूनी सुधारों और समान अवसरों की उपलब्‍धता के प्रश्‍न तक दिखाई देती है, वह मौजूद जेंडर असमानता जिसके कारण महिलाओं के सामने उपलब्‍ध विकल्‍प सीमित हो जाते हैं की गहनतर संरचनाओं को समझने में विफल रही हैं। इसे दूसरी अन्‍य विचार धाराओं मुख्‍यत: मार्क्‍सवादी समाजवादी और रेडिकल नारीवादि दोनों की ही आलोचना का शिकार होना पड़ा। इन दोनों की नजर में उदार नारिवादियों की समस्‍या यह है कि वह मौजूदा परिवार व्‍यवस्‍था का पर्याप्‍त प्रतिरोध नहीं करती हैं और केवल औपचारिक समानता से संतुष्‍ट है। मार्क्‍सवादी नारीवादी भी मानती हैं कि महिलाओं का उत्‍पीड़न मूलत: परिवार में उनकी परंपरागत स्थिति के कारण होता है। लेकिन रेडिकल नारीवादियों से भिन्‍न उनका जोर श्रम पर रहता है। रेडिकल नारीवादी मानती हैं कि महिलाओं के उत्‍पीड़न के जड़ में जैवकीय (Biological) कारण प्रमुख हैं और पुरुष द्वारा स्‍त्री का शारीरिक अधीनीकरण ऐतिहासिक रूप से निजी संपत्ति और उससे संबंधित वर्ग उत्‍पीड़न के उदय से पहले, उत्‍पीड़न का मूल रूप रहा है। रेडिकल नारीवाद का मानना है कि पितृसत्‍ता को नष्‍ट करके ही उत्‍पीड़न के अन्‍य रूपों को समाप्‍त किया जा सकता है। इस प्रकार रेडिकल नारीवाद ने वोट और कानूनी सुधारों के लिए उदार नारीवादी संघर्ष के साथ-साथ पूँजीवाद के विरूद्ध मार्क्‍सवादी संघर्ष को भी एक पूर्ण यौन क्रांति (जो परंपरागत यौन पहचानों को नष्‍ट कर देगी) की मांग को विस्‍थापित कर दिया है।
उदारवादी और समाजवादी/मार्क्‍सवादी दोनों नारीवादियों ने रेडिकल नारीवाद की समलैंगिकतावाद (Lesbianism) और अलगाववाद (Reparatism) जैसे उसके अत्‍यंत उग्र प्रस्‍ताओं के लिए आलोचना की है। इसके अलावा यह भी दलील देतीं है कि रेडिकल नारीवाद पितृसत्‍ता के ऐतिहासिक आर्थिक और भौतिक आधार की अनदेखी करता है और फलस्‍वरूप एक गैर ऐतिहासिक, जैविक निर्धारण के तर्क में फंसकर रह जाता है। इस प्रकार आज नारीवाद को एक तेजी से विकसित होती एक प्रमुख स्‍वायत्‍त आलोचनात्‍मक विचारधारा या विचार श्रंखला के रूप में देखा जाना चाहिए। इस अवधारणा में विचारों का एक विस्‍तृत फलक समाहित है और इसके अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर व्‍यापक संभावनाएं हैं नारीवाद अभी भी पुरुष प्रभुता के लिए एक राजनीतिक चुनौती बना हुआ है, लेकिन आज का सिद्धान्‍त अपने अंतिम उद्देश्‍य का उल्‍लेख करने के लिए 'सक्रमणात्‍मक के बजाय 'क्रांतिकारी' शब्‍द को ज्‍यादा प्राथमिकता देते हैं। नारीवादी एक ऐसे समतामूलक समाज की कल्‍पना करते है। जिसमें स्‍त्री और पुरुष समान और भिन्‍न हो सकेंगे।

संदर्भ ग्रंथ :
·       माहेश्‍वरी सरला, नारी प्रश्‍न, राधाकृष्‍ण प्रकाशन, नई दिल्‍ली
·       त्रिपाठी कुसुम, जब स्त्रियों ने इतिहास रचा, नवजागरण प्रकाशन, नागपुर
·       डॉ. जोशी गोपा, भारत में स्‍त्री असमानता, हिं.मा.का.नि. दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय
·       कुमार राधा, स्‍त्री संघर्ष का इतिहास, वाणी प्रकाशन
·       आर्य साधना, मेनन निवेदिता, लोकनीता जिनी, नारीवादी राजनीति संघर्ष एवं मुद्दे, हिं.मा.का.नि. दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय
·     पाठक,डॉ. सुप्रिया.   क्लास नोट्स. 2013 
      मनोज गुप्ता पथिक
      शोधार्थी पीएच॰ डी॰ (स्त्री अध्ययन)
     ईमेल-manojkumar07gupta@gmail.com

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