अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की कल्पना की शुरुआत 20वीं सदी
के प्रथम चरण से ही हो चुकी थी। यह ऐसा दौर था जब औद्योगिक जगत में एक व्यापक उथल-पुथल
हो रहा था और साथ ही कई क्रांतिकारी विचार भी आने लगे थे। महिलाएं भी अपनी
स्वतंत्र पहचान बनाने एवं अपने दमन और उत्पीड़न के खिलाफ एक जुट होकर बड़े बदलाव की
तरफ उन्मुख हो रही थीं। वर्ष 1910 में
कोपनहेगन में संपन्न हुए श्रमिक महिलाओं के द्वितीय विश्व सम्मेलन में पहली बार
जर्मनी की महिला नेत्री एवं चिंतक क्लारा जेटिकन ने अंतर्राष्ट्रीय महिला
दिवस का प्रस्ताव रखा और 1911 में इस पर सहमति बन गयी। यह मुख्य रूप से महिलाओं के
काम के अधिकार, वोट देने के अधिकार
तथा उनकी सार्वजनिक जीवन में सक्रिय सहभागिता आदि मुद्दों पर केंद्रित था । वर्ष
1975 में अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष की घोषण के साथ संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस बात
की भी घोषणा की गयी कि प्रत्येक वर्ष 8 मार्च के दिन को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
के रूप में मनाया जाएगा ।
21वीं सदी निःसंकोच इस बात की
गवाह है कि महिलाओं की स्थिति और उनके बारे में सामाजिक नजरिए में बदलाव आया है।
भारत सहित वैश्विक पटल पर महिलाएं अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। राष्ट्रीय
तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई संगठन महिलाओं के आर्थिक, राजनैतिक एवं सामाजिक सशक्तिकरण के लिए
प्रयासरत हैं। महिलाओं के लिए प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन जो 1995 में बीजिंज में तैयार
किया था। इसे चौथा विश्व महिला सम्मेलन के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन जब हम
दूसरे पहलू की तरफ दृष्टि डालते हैं तो हम इस बात पर सोंचने को मजबूर हो जाते हैं
कि क्या वास्तव में महिलाओं के प्रति समाज के लोगों का सकारात्मक दृष्टिकोण है ? यदि ऐसा है तो क्यों महिलाओं के प्रति हो रही हिंसा का ग्राफ दिनों दिन
बढ़ता ही जा रहा है ? लिंगानुपात में गिरावट दर्ज की जा रही
है । महिला दिवस की सार्थकता सही मायने तभी पूर्ण हो सकती है , जब विश्व भर में महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक एवं
राजनैतिक स्वायत्तता प्राप्त हो पाएगी । एक जेंडर संवेदनशील समाज की स्थापना हो । इसी
दिशा में हमें अग्रसर होना है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2015 की विषय वस्तु मेक
इट हैपेन रखा गया है। अर्थात हम यह कह सकते हैं कि अब महिला अधिकारों और उनके
प्रति दुराग्रहों को दूर कर नए अवसरों तक उनकी पहुंच को संभव बनाना ही है। वर्ष 2015 में बीजिंग+20 का आयोजन होना रहा है।
जिसमें महिलाओं के विरुद्ध हिंसा, कन्या शिशु, महिला शिक्षा, निर्णय की भूमिका आदि विषयों को
चर्चा के केंद्र में रखा जाना है। यह ऐसे मुद्दे हैं जो समकालीन परिस्थितियों में
समीचीन हैं।
मनोज कुमार गुप्ता 'पथिक'
शोधार्थी- पीएच. डी (स्त्री अध्ययन)
म. गां.. अं. हिं. वि. वि., वर्धा
ICSSR Doctoral fellow
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