n मनोज कुमार गुप्ता 'पथिक'
शोधार्थी पीएच.डी. एवं ICSSR Institutional Doctoral Research Fellow
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महराष्ट्र)
ई-मेल आईडी- manojkumar07gupta@gmail.com
प्रतियोगिता दर्पण जनवरी 2015 अंक में प्रकाशित
साइबर व्योम (cyber space)-
साइबर स्पेस शब्द का प्रयोग
सबसे पहले विलियम गिब्सन ने वर्ष 1984 में अपनी पुस्तक ‘न्यू रोमांसर’ में
किया था। यह एक ऐसी आभासी दुनिया है, जहां बहुत सारी ऐसी
गतिविधियां है जो आप देख नहीं सकते और यदि कुछ आप देख भी सकते है पर उसे छू नहीं
सकते। लेकिन इस आभासी दुनिया ने वास्तविक जगत को जबरदस्त ढंग से प्रभावित किया है।
इसमें अकूत क्षमताएं हैं, अपार संभावनाएं हैं। ऐसा प्रतीत
होता है कि इंटरनेट और कंप्यूटर के बिना रहा ही नहीं जा सकता।
लगभग 90 के दसक के मध्य का
दौर दुनिया भर में तेजी से बढ़ते भूमंडलीकरण और कंप्यूटरीकरण का दौर रहा है। हर
क्षेत्र में इसका विस्तार बहुत तेजी से हो रहा है चाहे वह व्यापार, शासन प्रणाली, शिक्षा, स्वास्थ्य या अन्य कोई भी क्षेत्र हो साइबर स्पेस के दायरे में आ चुका
है। इलेक्ट्रानिक संचार और सॉफ्ट कॉपी जैसे माध्यमों का प्रयोग बढ़ा है। संचार, नेटवर्किंग, सक्रियता और मनोरंजन जैसी कई नयी
संभावनाएं इंटरनेट के जरिये बहुत ही आसान तथा संभव हुई हैं। इंटरनेट और कंप्यूटर के माध्यम से विकास की गति
तो तेज हुई है परंतु पिछले दसकों इस आभासी दुनिया में अपराध भी बढ़े हैं। जो बहुत
ही व्यापक और विध्वंसकारी सिद्ध हो रहे हैं। इसे आमतौर पर साइबर क्राइम अथवा साइबर
अपराध के नाम से जाना जाता है।
लोग अपराध क्यों करते
हैं या इसकी तरफ क्यों आकृष्ट होते हैं इसकी अनेक संभव व्याख्याओं में पारस्परिक
मतभेद हो सकता है। जिसकी मीमांसा अपराधशास्त्रियों द्वारा विभिन्न रूपों में की
जाती है। परंतु इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि समाज में अपराध का ग्राफ तेजी से
बढ़ने के साथ नित नए और व्यापक रूप सामने आ रहे हैं। इनसे निजात पाना दुष्कर होता जा
रहा है। साइबर क्राइम अपराधों की नयी तस्वीर है जिसे वैश्विक स्तर पर बहुत ही
भयानकता के रूप में देखा जा रहा है। इसे कंप्यूटर क्राइम के रूप में भी जाना जाता
है। इसे कुछ इस प्रकार परिभाषित किया गया है-
“संगणक अपराध या साइबर
अपराध का संदर्भ उस अपराध से है जिसमें एक संगणक और एक संजालक की संलिप्तता होती
है। भले ही अपराध होने में संगणकों की कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका रही हो या नहीं”
अथवा “ संगणक के इस्तेमाल से की गयी गैर कानूनी गतिविधि, जिसमें संगणक से संबंधित फिरौती, धोखाधड़ी और जालसाजी तथा आंकड़ों तक अप्राधिकृत प्रवेशिता तथा आंकणों के
साथ छेड़-छाड़ शामिल है।”
इक्कीसवीं सदी में साइबर
क्राइम विश्वव्यापी समस्या के रूप में उभरा है। हालांकि इसका पहला मामला वर्ष 1820
ई. में फ्रांस में सामने आया था। ज्ञातव्य है कि 90 के दसक के मध्य से विकसित और
विकासशील सभी देशों में भूमंडलीकरण के साथ-साथ कंप्यूटरीकरण का विस्तार हुआ है।
नयी जीवन पद्धति में हमारी निर्भरता कंप्यूटर और इंटरनेट पर बढ़ी है। वर्तमान में
भारत इंटरनेट प्रयोग के मामले में एशियाई देशों में 11वें स्थान पर है। साइबर
क्राइम सूचना एवं तकनीकी का प्रयोग करने वाले बहुत बड़े परिक्षेत्र को प्रभावित
करता है।
साइबर क्राइम के प्रकार
अभी तक 166 प्रकार के
कंप्यूटर क्राइम हैं जिन्हें साइबर क्राइम की श्रेणी में रखा जा सकता है। लेकिन
साधारणतयः इसे तीन रूपों में देखा जा सकता है। पहला किसी व्यक्ति या समुदाय के
खिलाफ दूसरा धन या संपत्ति के हेर-फेर और तीसरा सरकार या सरकारी संस्था के विरुद्ध, इसे साइबर आतंकवाद के रूप में भी जाना जाता
है। व्यापक रूप में देखा जाय तो इंटरनेट के माध्यम से किए गए अपराध जिसमें क्रेडिट
कार्ड धोखाधड़ी, पहचान की चोरी, शिशु
पोर्नोग्राफी, सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से अभद्रता, अनैतिक संगणक भंजन (हैकिंग), निजता का हनन आदि को
साइबर अपराध के रूप में देखा जाता है।
साइबर शिकार (cyber stalking)
इंटरनेट के माध्यम से अक्सर
बहुत आसानी से अवांछित ई-मेल,
ई-डाक को लोगों तक पहुंचाया जाता है। इन अवांछित तत्त्वों के माध्यम से एक व्यक्ति
दूसरे व्यक्ति को उद्वेलित करने वाले संदेश भेजकर परेशान करने की कोशिश करता है
जैसे किसी बड़े धन में हिस्सेदारी की आशा दिलाकर आपके गोपनीय दस्तावेजों को साझा
करने हेतु आपको प्रलोभन देता है। कभी-कभी इस कार्य के लिए विभिन्न साइबर माध्यमों
से आपको भयाक्रांत भी करता है। ऐसी गतिविधियों को साइबर शिकार कहते हैं। अवांछित
ए-डाक को प्रायः स्पैम कहते हैं और इस गतिविधि को स्पैमिंग कहते
हैं। साइबर अपराधी इस कार्य के लिए चैट रूम, वेबसाइट आदि
माध्यमों का उपयोग करते हैं।
साइबर निंदा( cyber defamation)
जब कोई व्यक्ति कंप्यूटर या
इंटरनेट के माध्यम से किसी अन्य के बारे में गलत जानकारी या अपमान जनक टिप्पड़ी
अथवा अश्लील तथ्यों का प्रसार करता है तो इसे साइबर निंदा के रूप में जाना जाता है।
आमतौर से यह स्त्री पुरुष दोनों के साथ होता है, परंतु विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक भारत में साइबर निंदा का
शिकार अधिकतर महिलाएं होती हैं।
साइबर अश्लीलता (cyber
pornography)
वर्तमान में साइबर
पोर्नोग्राफी एक विकट समस्या है जिससे सबसे अधिक महिलाए और युवा पीढ़ी प्रभावित हो
रही है। इंटेरनेशनल सेक्योरिटी सिस्टम लैब के सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. गिल्बर्ट
वोंडरैसेक ने शोधकर्ताओं की टीम के साथ किए गए शोध में पाया कि मौजूदा बेबसाइटों
में तकरीबन 12% ऐसी हैं जो किसी न किसी रूप में पोर्नोग्राफी दिखाते हैं। और 24
वर्ष से कम उम्र के 70% लोग इन साइटों को देखते हैं। यह तथ्य भी सामने आया कि
3.23% ऐसी भी बेबसाइटें हैं, जो
यूजर्स के बारे में गोपनीय जानकारी इकट्ठा करने वाले तथा वाइरस पैदा करने वाले
सॉफ्टवेयर लगाए हैं। इसके लिए युवा महिलाओं और लड़कियों को आसानी से शिकार बनाया जा
रहा है। अधिकतर दर्ज मामलों में 16 से 35 उम्र की महिलाएं होती हैं। Dr. L.
Prakash V Superindent इस मामले में एक अर्थोपैडिक डा॰ ने एक महिला को
जबरन सेक्सुअल क्रियाकलाप करने के लिए बाध्य किया और उसका वीडियो क्लिप बनाकर उसे
प्रौढ़ मनोरंजन सामग्री के रूप में बेंच दिया। इससे अपराधी पीड़ित को बार-बार आतंकित
करता रहा। ऐसे मामले भी आते हैं जब प्रेम संबंधों में अपने पार्टनर का अश्लील फोटो
या वीडिओ लेकर अलगाव की स्थिति में उसका दुरुपयोग किया जाता है। उसे इंटरनेट पर
डालने या मार्केट में बेंचने की धमकी आदि शामिल होती है। चाइल्ड पोर्नोग्राफी का
भी चलन सामने आ रहा है इसमें बच्चों को आसानी से शिकार बनाया जा रहा है। ऐसे
अधिकतर मामलों में नजदीकी दोस्त, सगे संबंधी, या ऑफिस के लोग शामिल होते हैं।
मोर्फिंग- अनधिकृत प्रयोगकर्ता या नकली पहचान वाले लोगों द्वारा किसी मौलिक
चित्र को बदलकर या संशोधित कर संपादित करना मोर्फिंग के रूप में जाना जाता है।
ई-मेल धोखाधड़ी-
ई-मेल, चैट और मैसेज के माध्यम से भी साइबर अपराधी
अकेले या समूह के साथ मिलकर धमकी भरे संदेश या फिरौती अथवा लॉटरी आदि के नाम पर लोगों
के गोपनीय दस्तावेजों तक पहुंचने की कोशिश करते हैं। साइबर लॉ टाइम्स डॉट कॉम के
विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि भारत में साइबर क्राइम का खतरा महिलाओं और बच्चों
पर अधिक है। अधिकतर मामले में ऐसी शिकायत दर्ज कराई जाती है जब किसी महिला के
ई-मेल पर अश्लील चित्र आदि कई बार भेजा जाता है। पीड़ित के चेहरे को कंप्यूटर के
माध्यम से किसी नग्न तस्वीर के साथ जोड़कर संपादित किया जाता है और उसके मेल खाते
में भेज दिया जाता है। ई-मेल धोखाधड़ी की में ऐसे कई तरीके शामिल किए जा सकते हैं।
साइबर आतंकवाद-
साइबर आतंकवाद से आशय ऐसे
किसी कृत्य से है जो किसी कंप्यूटर संसाधन और इंटरनेट के माध्यम देश की संप्रभुता, देशवासियों के जीवन और संपत्ति और विदेशों
से संबंध को नुकसान पहुंचता है। अथवा आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने में कंप्यूटर
या इंटरनेट का इस्तेमाल करना या किसी राष्ट्र अथवा बड़ी कंपनियों अथवा सुरक्षा
व्यवस्था के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ को हैक कर चुराना आदि साइबर आतंकवाद की श्रेणी
में आता है। बड़े पैमाने पर वाइरस हमले भी इसी कोटि का अपराध है। यह साइवर क्राइम
का सबसे विद्रूप चेहरा है। सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम, 2008 में साइबर आतंकवाद को परिभाषित किया गया है। अधिनियम के अंतर्गत
परिभाषित है कि, अपराधी विदेशी नागरिक भी हो सकता है और
अंतर्राष्ट्रीय चिंतन कि प्रवृत्ति मृत्युदंड के सख्त खिलाफ है। इसमें संलिप्त
अपराधी को अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।
इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-
लाल किले पर आक्रमण
(वर्ष2000) को अंजाम देने के लिए नॉलेज प्लस नामक कंप्यूटर केंद्र का इस्तेमाल
किया गया था। वर्ष 2001 में संसद पर हुये हमले में भी कंप्यूटर और अन्य
एलेक्ट्रोनिक यंत्रों का प्रयोग किया गया था। शीर्ष न्यायालय के संसद आक्रमण वाद से
निःसंदेह यह सिद्ध होता है कि, इस
घटना में सेल फोन, जेनेसा वेबसिटी और साइबरटेक कंप्यूटर
हार्डवेयर सोल्यूशन नमक दो साइबर गृहों, एक लैपटॉप सहित अन्य
वस्तुओं का इस्तेमाल किया गया था। इन साइबर गृहों का संचालन काल्पनिक नामों वाले
फर्जी पहचानपत्रों के आधार पर घटना को अंजाम देने के लिए किया जा रहा था।
कानूनी प्रावधान
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (2000), इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य एलेक्ट्रानिक वाणिज्य को वैधानिकता दिलवाना
था। साथ ही इसने भारतीय दंड संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनिय 1872, बैंकर्स अधिनियम 1891 और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 में संशोधन की
आवश्यकता को जन्म दिया। इसका प्रभाव
क्षेत्र सम्पूर्ण भारत और कुछ स्थितियों में भारत की सीमा के बाहर भी है। भारतीय
परिदृश्य में तेजी से बढ़ते साइबर अपराध को देखते हुए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम
(2000) में संशोधन करना आवश्यक हो गया। और यह सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम
(2008) के रूप में आया जो 27 अक्टूबर 2009 से लागू हो गया। इसमें कुछ महत्त्वपूर्ण
बाते शामिल की गईं जिससे सूचना
प्रौद्योगिकी अधिनियम अधिक व्यापक और
सशक्त हुआ। संशोधन के पश्चात इसने उन लोगों पर नकेल कसना शुरू कर दिया है जो साइबर
जगत में अश्लील कृतियों एवं कृत्यों के साथ संलिप्तता रखते हैं।
सूचना प्रौद्योगिकी
अधिनियम(2000) का अनुभाग 66र(एफ) साइबर आतंकवाद को परिभाषित करता है। इसी प्रकार
पहचान की चोरी (अनुभाग 66स);
निजता का उलंघन (अनुभाग 66य); इलेक्ट्रानित रूप में अभद्र
सामाग्री का प्रकाशन आदि (अनुभाग 67), यौनिक रूप से स्पष्ट
कृत्यों आदि को अंतर्विष्ट करने वाली सामाग्री का एलेक्ट्रानिक प्रकाशन (अनुभाग
67क) तथा बच्चों यौनिक रूप से स्पष्ट कृत्यों आदि को अंतर्विष्ट करने वाली
सामाग्री का एलेक्ट्रानिक प्रकाशन (अनुभाग 67ख) हेतु दंड का प्रावधान किया गया है।
भारत से बाहर कारित अपराधों पर अधिनियम
(अनुभाग 75) लागू होगा।
वर्तमान स्थिति-
कतिपय कानूनी प्रावधानों के
बावजूद भारत में साइबर अपराध तेजी से बढ़ रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो
की वर्ष 2013 की रिपोर्ट पर दृष्टि डालें (वर्ष 2012-2013) में साइबर अपराध में 50% वृद्धि हुई। जो चिंतनीय विषय है। साइबर अपराध
को अंजाम देने वालों में अधिकतर ऐसे अपराधी शामिल हैं जिनकी उम्र 18-30 वर्ष के
बीच है। दर्ज सिकायतों में महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश तथा उत्तर प्रदेश क्रमशः पहले, दूसरे
और तीसरे स्थान पर हैं। वर्ष 2013 में दिल्ली में 131 साइबर अपराध के मामलों में
शिकायत दर्ज कराई गई जो 2012 के मुक़ाबले
70% से अधिक है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तेजी से भारत में साइबर
अपराध का खतरा बढ़ रहा है।
साइबर विशेषज्ञ पवन दुग्गल
ने बीबीसी हिंदी को दिये गए अपने एक साक्षात्कार में बताया कि यदि हम सूचना
प्रौद्योगिकी अधिनियम(2000) पर नजर डालें तो पता चलेगा कि यह कानून इन बेबसाइटों
पर कानूनी ज़िम्मेदारी डालते हुये कहता है कि वे अपनी सही सोंच का इस्तेमाल करें।
ऐसी स्थिति में अक्सर हर बेबसाइट यह कहकर निकल जाती है कि हम भारत के बाहर के हैं, हम आपके कानून के अंतर्गत बाध्य नहीं हैं।
चीन के कानून में स्पष्ट कहा गया है कि यदि आपको चीन में आना है तो स्थानीय कानून
का अनुसरण करना होगा। साइबर या ऑनलाइन हमलों से सुरक्षा को लेकर आई “मैकेफ़ी साइबर
डिफेंस रिपोर्ट” के अनुसार भारत साइबर सुरक्षा चौकसी के मामले में निचले पायदान पर
है।
निकर्ष-
उपयुक्त अध्ययन से स्पष्ट होता
है कि वास्तव में 21वीं सदी में साइबर अपराध एक नयी और विकट समस्या के रूप में
तेजी से उभर रहा है। साइबर अपराध को एक बंद कमरे से भी अंजाम दिया जा सकता है।
दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर साइबर अपराधी बड़ी-बड़ी घटनाओं को अंजाम देते हैं।
ये सफेदपोश अपराधी विधिक प्रावधानों से बचते हुये और समाज में आदर और सम्मान से
रहते हुये आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं। इन्हें पहचानना इतना आसान
नहीं होता। साइबर अपराध की स्पष्ट व्याख्या और सख्त कानून के अभाव में भारतीय दंड
संहिता तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम को संयुक्त रूप से अपराधियों को सजा देने
के लिए इस्तेमाल किया जाता है। साइबर अपराध को नियंत्रित करने के लिए और भी शक्त
कानून की जरूरत है।
संदर्भ सूची-
· Shah, Aaushi; Ravi, Shrinidhi. A to Z of cyber crime.
Asian school of cyber law
· Jaishankar, k.. Cyber criminology.(2011). CRC
press, New York
· Comprehensive study on cyber crime draft feb-2013, UNODC Vienna
· Understanding cyber crime: Phenomena, challenges and
legal response.(2012). International
telecommunication union
· https://www.kpmg.com/Global/en/IssuesAndInsights/ArticlesPublications/Documents/cyber-crime.pdf (27/09/14)
· http://www.gcl.in/downloads/bm_cybercrime.pdf (27/09/14)
· http://www.bbc.co.uk/hindi/news/2012/01/120130_cyber_attack_ms, (31/01/2012, 05:06 IST )
· Crime survey report 2013 staistics, NCRB
· http://www.cyberlawtimes.com/cyber-crime-statistics-india-2013-2014/
· http://www.indiancybersecurity.com/index.html
· http://www.bbc.co.uk/hindi/news/2010/06/100613_pornsite_risk_dps,
(13 june 2010)
· डॉ. मिश्र, जय
प्रकाश. (2014). साइबर विधि एक परिचय. सेंट्रल लॉ पब्लिकेशन्स
इलाहाबाद
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