अजनवी था वो शहर
हर सख्स अजनवी था
सिलसिला वो नया था
माहौल अजनवी था
दिन के भी उजाले में
खो जाने का जो डर था
हर सख्स अजनवी था
हर वक्त कोई डर था
कुछ लोग भले थे पर
ना जाने क्यों उन पर शक था
बीता हुआ जो कल था
यादों का एक पल था
अजनवी था वो शहर
हर सख्स अजनवी था
---मनोज कुमार गुप्ता 'पथिक'
क्या करोगे जब कभी कोई व्यक्ति अपना शहर छोड़ दूसरे शहर को जाता है तो ऐसा ही उसे प्रतीत होता है लेकिन किसी न किसी पर उसे विश्वास कर उसे अजनवी से अपना बनाना होता है...
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