Monday, 18 May 2015

ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए सकारात्मक कदम: जेंडर मुख्यधारीकरण





सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विकास की प्रक्रिया में महिलाओं की सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित होने से ही महिला सशक्तीकरण के लक्ष्यों की पूर्ति संभव हो सकती है। विश्व की आबादी का लगभग एक चैथाई ग्रामीण महिलाएं एवं बालिकाएं हैं। ग्रामीण और कृषि क्षेत्र के सेवा कार्यों में योगदान अधिक होने के बावजूद महिलाएं आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक सूचकांक के निम्नतम स्तर पर हैं। आय, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और निर्णय प्रक्रिया में उनकी सहभागिता काफी कम है। वैसे देखा जाय तो व्यवसाय, सरकारी सेवाओं, निजी एवं सार्वजनिक जीवन, राजनीति तथा अन्य क्षेत्रों में महिलाएं पहले से अधिक सक्रिय भूमिका में आ रही हैं। लेकिन आज भी ग्रामीण इलाकों में स्थिति बिल्कुल विपरीत नजर आ रही हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आयोजित एक समारोह में महिलाओं की बराबर की भागीदारी पर जोर देते हुए कहा था कि, ग्रामीण महिलाओं और युवतियों की पीड़ा समाज की महिलाओं और लड़कियों को प्रतिबिम्बित करती है। अगर संसाधनों पर समान अधिकार हो और वे भेदभाव और शोषण से मुक्त हों तो ग्रामीण महिलाओं की क्षमता पूरे समाज की भलाई के स्तर में सुधार ला सकती है। भारतीय संदर्भ में देखा जाय तो यह बात ग्रामीण क्षेत्रों के संबंध में और अधिक महत्वपूर्ण बन जाती है। क्योंकि वर्तमान में भारत की कुल आबादी में 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी गांवों की है।
किसी भी राष्ट्र या समाज का विकास तब तक संभव नहीं होगा, जब तक समाज के प्रत्येक तबके का विकास प्रक्रिया में समान योगदान नहीं होगा। इस प्रक्रिया में महिलाओं का योगदान और भी महत्त्वपूर्ण है जो आधी आबादी का प्रतिनिधितत्व करती हैं। इसके लिए महिला सशक्तीकरण अर्थात महिलाओं को वे सारे उपकरण और अवसर उपलब्ध कराना जिससे वे विकास प्रक्रिया में सहभागी बन सकें। वैश्विक स्तर पर इसकी शुरुआत नैरोबी में हुए तीसरे विश्व महिला सम्मेलन में जेंडर मुख्यधारिकरण के विचार के साथ हो चुकी थी। अर्थात विकास की सभी नीतियों, अनुसंधान योजना निर्माण, समर्थन, सलाह व विकासात्मक कार्यक्रमों और उसके संचालन तक में लैंगिक दृष्टिकोण का उपयोग। वर्ष 1995 में चैथे विश्व महिला सम्मेलन बीजिंग में घोषित प्लेटफार्म ऑफ एक्शन ने इस परिकल्पना को और विस्तार दिया। भारत भी इसका साक्षी रहा। भारत में भी आठवीं पंचवर्षीय योजना से जेंडर दृष्टिकोण अपनाया जाने लगा और लगातार इस दिशा में अग्रसर है। पंचवर्षीय योजनाओं में ऐसे कार्यक्रमों और नीतियों का निर्माण किया जाता है जो महिला सशक्तीकरण की दिशा में अधिक से अधिक कारगर हो सके। महिलाओं के सर्वांगीण विकास और सशक्तीकरण के लिए विभिन्न नीतियों और योजनाओं के निर्माण और क्रियान्वयन के माध्यम से उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयास किए जा रहे है। जेंडर बजटिंग, मानरेगा, पंचायतों में महिला नेतृत्त्व को बढ़ावा देना आदि इसी क्रम में शामिल हैं । एक तरफ सहस्राब्दी विकास लक्ष्य वर्ष 2015 निर्धारित किया गया था जिसे भारत ने भी स्वीकारा था, पूरा होने जा रहा है।  ऐसे में ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण एवं विकास में जेंडर मुख्यधारीकरण प्रक्रिया द्वारा हो रही क्रमिक प्रगति के साथ ही निकट भविष्य में आने वाली चुनौतियों एवं संभावनाओं पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
(यह लेख दिल्ली से प्रकाशित हिंदी दैनिक वुमेन एक्सप्रेस में 22 अप्रैल 2015 को प्रकाशित हो चुका है।) लिंक http://womenexpress.in/images/epaper/22_4_15.pdf
मनोज कुमार गुप्ता 'पथिक'
लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में पीएच. डी. (स्त्री अध्ययन) शोधार्थी एवं
भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के डॉक्टोरल फेलो हैं।  
ईमेल पता- manojkumar07gupta@gmail.com

मो. 7387914970

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